पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को जदयू की ओर से विधान परिषद राज्यपाल कोटे से भेजा गया था। तब उपेंद्र कुशवाहा जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे। बाद में जदयू नेतृत्व से तनातनी के बीच उपेंद्र कुशवाहा ने 24 फरवरी 2023 को बजट सत्र शुरू होने के ठीक पहले इस्तीफा दे दिया। उपेंद्र कुशवाहा अब जदयू में भी नहीं रहे, उन्होंने अलग दल बना लिया है। उनके इस्तीफे के बाद लगभग 8 माह तक उनकी सीट विधान परिषद में खाली रही। इस सीट को डॉ. राजवर्धन आजाद के रूप भरा गया है। हालांकि अभी तक यह कयासबाजी चल रही थी कि जदयू कुशवाहा जाति के ही किसी नेता को यह सीट दे सकती है। सबसे आगे जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा का नाम था। लेकिन नीतीश कुमार ने डॉ. आजाद की सिफारिश की, जिसे अब अधिसूचित किया जा चुका है। इस तरह उपेंद्र कुशवाहा के साथ कुशवाहा जाति का एक प्रतिनिधित्व भी बिहार विधान परिषद से बाहर हो गया है।
भाजपा-उपेंद्र को मिला नया मुद्दा?
अमूमन यह देखा गया है कि जिस जाति के नेता सीट खाली करते हैं, उसी जाति के नेता को पार्टियां विधान परिषद में भेजती हैं। सालों पहले जब भाजपा के ताराकांत झा ने सीट खाली की थी, तो उनके स्थान पर मंगल पांडेय को विधान परिषद में एंट्री मिली। ताराकांत झा भी ब्राह्मण थे और मंगल पांडेय भी ब्राह्मण हैं। लेकिन कुशवाहा के स्थान पर ब्राह्मण को सीट देने से उपेंद्र कुशवाहा और भाजपा को नीतीश कुमार और जदयू पर हमले का नया मुद्दा मिल सकता है।
सम्राट चौधरी ने लगाया था आरोप
अभी तीन दिन पहले ही सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार पर कुशवाहा जाति के वोट लेकर उचित प्रतिनिधित्व नहीं देने का आरोप लगाया था। सम्राट ने कहा था कि “नीतीश कुमार को लव-कुश समाज ने सम्मान दिया, गद्दी तक पहुंचाया है। लेकिन नीतीश कुमार ने लव-कुश समाज को ठग कर लालू यादव के बेटे को उत्तराधिकारी बना लिया। लव-कुश समाज यह नहीं सहेगा। जनता ने तय कर लिया है। किसी से मिल जाएं नीतीश कुमार, उनको अब सत्ता से उखाड़ना ही है।” कुशवाहा द्वारा खाली की गई जगह ब्राह्मण नेता को विधान परिषद जाने पर एक बार फिर बिहार में जातीय आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो सकता है।
आपको बता दें कि डॉ. राजवर्धन आजाद को राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में एंट्री मिली है। डॉ. आजाद की पृष्ठभूमि पॉलिटिक्स ही है। उनके पिता बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। साथ ही उनके भाई कीर्ति आजाद दरभंगा से भाजपा के टिकट पर लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। हालांकि कीर्ति आजाद अभी तृणमूल कांग्रेस में हैं। वहीं डॉ. राजवर्धन आजाद ने फ्रंट डोर से राजनीति में आने का प्रयास किया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने गोड्डा सीट पर किस्मत आजमाई थी। उन्हें नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी जदयू का उम्मीदवार बनाया था। लेकिन तब राजवर्धन आजाद जीत नहीं सके। यहां तक कि वोटों के मामले में टॉप 5 उम्मीदवारों में भी डॉ. आजाद शामिल नहीं हो सके। इसके बाद 2019 में डॉ. आजाद को बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। 2022 में उन्हें नीतीश सरकार ने सेवा विस्तार भी दिया।