2024 लोकसभा चुनावों में महागठबंधन के प्रमुख दल राजद का प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा। 23 सीटों पर चुनाव लड़ महज चार पर जीत दर्ज करने वाले राष्ट्रीय जनता दल को उम्मीद थी कि उसके खाते में कम से कम दस सीटें आएंगी। लेकिन राजद की हार का कोई एक कारण नहीं था। भले ही चुनाव प्रचार के समय तेजस्वी यादव ने बड़े-बड़े मुद्दे उठाये, नौकरी के वादे किए, लेकिन राजद का कोर वोटर क्या चाहता है और वह क्यों नाराज़ है यह राजद समझ नहीं सकी। अब राजद लोकसभा चुनाव में की गई अपनी गलतियों का कफ़्फ़ारा अदा (प्रायश्चित) करने में लगी है।
लालू और तेजस्वी ने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा और पत्नी हिना को दिलाई राजद की सदस्यता
राजद भले ही MY समीकरण से बाहर निकल कर अब BAAP फॉर्मूले पर आ गई लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली हार से उसे सबक मिल गया कि मुस्लिम के बिना राजद की लालटेन में रोशनी नहीं आ सकती। लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के समय राजद ने मुस्लिमों की पूरी अनदेखी की। यहां तक कि सीवान में भी राजद दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना सहाब को नहीं मना सकी और वह निर्दलीय चुनाव लड़कर राजद का ही खेल खराब कर दीं।
पप्पू यादव को किया दरकिनार
राजद ने एक ही गलती नहीं की। पप्पू यादव को भी नजरंदाज कर लालू यादव ने अपना ही नुकसान किया। पूर्णिया सीट पर पप्पू यादव की स्थिति मजबूत थी। सीट बंटवारे में यह सीट राजद के हिस्से में आई, जबकि पप्पू यादव कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे। राजद ने आनन-फानन में बिना सहयोगी दलों से चर्चा किए यह सीट जदयू से राजद में शामिल हुई बीमा भारती को दे दी। पप्पू यादव पहले राजद से ही पूर्णिया सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन लालू यादव ने पप्पू यादव को अहमियत नहीं दी। या यूं कहें कि लालू यादव पप्पू यादव की लोकप्रियता से डरते थे। वह यह नहीं चाहते कि उनके बेटे तेजस्वी यादव के चेहरे के सामने कोई और बड़ा चेहरा बनकर राजद में उभरे। फिर हुआ ये कि पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय लड़ कर चुनाव जीत गए।
नहीं हिट हुआ ‘बाप’ समीकरण
1990 से ही बिहार में मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण के सहारे बिहार की राजनीति की धूरी बने लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव में दूसरे समुदायों पर भी किस्मत आजमाने निकल पड़े थे। तेजस्वी यादव ने ‘माय’ के साथ ‘बाप’ (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और पुअर यानी गरीब) का फॉर्मूला दिया था, जिसमें राजद की राजनीति में सबको हिस्सेदारी देने का वादा था। हालांकि लोकसभा चुनाव में राजद को इसका फायदा होता नहीं दिखा।
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कई लोगों को यह भी लगता है कि आरजेडी ने लोकसभा चुनाव में ओबीसी जाति समूह कुशवाहा को अधिक तरजीह दी, जो कि NDA का पारंपरिक वोट बैंक रहा है। लालू प्रसाद और तेजस्वी ने ‘यादव’ उम्मीदवारों को पीछे छोड़ते हुए 7 कुशवाहा उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे। इसके जरिए उन्होंने कुशवाहा वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की। लेकिन राजद के इस प्रयोग को लेकर ओबीसी मतदाताओं के बीच ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखी।
एनडीए को हो गया फायदा
RJD का लंबे समय तक यादव-मुस्लिम समीकरण पर फोकस रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव में वो इससे कुछ हटते नजर आए तो बात नहीं बनी। यही वजह थी कि कुछ नेता विद्रोही हो गए और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा। राजद और इंडिया ब्लॉक यादवों के बीच वोटों के विभाजन को रोकने में कामयाब नहीं हुआ। इससे एनडीए को अपनी सीटों को बड़े पैमाने पर वापस हासिल करने में काफी मदद मिली।
शहाबुद्दीन की पत्नी और बेटे से होगा ‘कफ़्फ़ारा’
अब बिहार में अगले साल (2025) विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसको लेकर सभी पार्टियों ने अभी से दांव खेलने शुरू कर दिए हैं। राजद भी अब अपनी गलती सुधारते हुए दिख रही है। आज लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव ने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना सहाब और उनके बेटे ओसामा को राजद की सदस्यता दिलाई है। माना जा रहा है कि RJD ओसामा को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट दे सकती है। क्योंकि उनकी मां और पिता दोनों ही आरजेडी से जुड़े रहे हैं।
लालू प्रसाद यादव और दिवंगत नेता शहाबुद्दीन के रिश्ते अच्छे थे, लेकिन पूर्व सांसद के निधन के बाद दोनों ही परिवारों में काफी दूरियां आ गई थीं। हाल के समय में पारिवारिक और राजनीतिक तौर पर ये दूरी और बढ़ी। 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों परिवारों में काफी तल्खी दिखी थी। बागी तेवर अपनाते हुए हिना सहाब ने सीवान से लोकसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा। हालांकि वो हार गई थीं। लेकिन राजनीति कब क्या मोड़ ले ले, यह कोई नहीं जानता। अब खबर है कि दोनों परिवारों के बीच जो दूरियां थीं, वह खत्म हो चुकी है। अब शहाबुद्दीन की पत्नी और बेटे से राजद को कितना फायदा होगा यह तो आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।