चुनाव मध्यप्रदेश विधानसभा का हो रहा है लेकिन चैन बिहार और उत्तरप्रदेश की राजनीतिक दलों को भी नहीं है। अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से अलग ही टशन चल रहा है। इस बीच बिहार की सत्ताधारी पार्टी जदयू ने भी मध्य प्रदेश चुनाव में एंट्री कर ली है। वैसे तो कांग्रेस के साथ जदयू और समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में I.N.D.I.A. की ओर से उतरने का संकल्प ले चुके हैं। लेकिन इस संकल्प का असर राज्यों की विधानसभा चुनाव पर नहीं पड़ रहा। सपा और कांग्रेस तो यूपी में भी अलग अलग ही पिछले चुनाव में उतरे थे। लेकिन बिहार में तो जदयू और कांग्रेस दोनों अभी साथ में सरकार चला रहे हैं। इसके बावजूद जदयू ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस का हाथ मजबूत करने की बजाय अपना टांग अड़ा दिया है। वैसे जदयू और मध्यप्रदेश का चुनावी जुड़ाव नया नहीं है। लेकिन यह सिर्फ सांकेतिक जुड़ाव ही रहा क्योंकि जदयू को आजतक मध्यप्रदेश में सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली है।
दो लिस्ट में 10 प्रत्याशी
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए JDU ने अपने उम्मीदवारों की दो सूचियां जारी की हैं। हर सूची में पांच-पांच नाम हैं। कुल 10 प्रत्याशियों की दो सूची I.N.D.I.A. की एकजुटता पर सवाल उठाने के लिए काफी हैं। हालांकि जदयू और कांग्रेस का इसको लेकर नजरिया अलग रहा है। वैसे तो मध्यप्रदेश में दो दशक से भाजपा ही नंबर 1 पर बनी हुई है। लेकिन भाजपा को टक्कर कांग्रेस से ही मिली है। इसके बावजूद जदयू ने प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि उसका रिकॉर्ड खास नहीं शर्मनाक रहा है।
शरद यादव के कारण जदयू का था इंटरेस्ट
जदयू की स्थापना के वक्त अध्यक्ष थे शरद यादव, जो मूल रूप से मध्य प्रदेश के ही थे। शरद यादव के कारण ही जदयू को मध्य प्रदेश की राजनीति में इंटरेस्ट रहा। 1998 में नीतीश कुमार की पार्टी ने पहली बार मध्यप्रदेश में उम्मीदवार दिया। तब 144 उम्मीदवरों में से 135 की जमानत जब्त हुई। नीतीश कुमार और शरद यादव के नाम जीत का झंडा सिर्फ पाटन सीट पर सोबरान सिंह लहरा सके। हालांकि पार्टी को 4 लाख, 96 हजार 951 वोट मिले। लेकिन 2003 में जदयू का इंटरेस्ट मध्य प्रदेश में सिमट गया। सिर्फ 36 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए और बड़वारा से सरोज बच्चन नायक ही चुनाव जीत सके। इनमें से 33 की जमानत जब्त हुई। जदयू को मिले वोटों की संख्या 1 लाख 40 हजार 651 हो गई।
2008 में शर्मनाक प्रदर्शन
इसके बाद 2008 में भी जदयू ने अपने उम्मीदवार उतारे। तब बिहार में जदयू और भाजपा की सरकार थी। इसके बावजूद जदयू ने मध्यप्रदेश में अपने 49 उम्मीदवार उतारे। लेकिन सबकी जमानत जब्त हुई। जदयू को तब सिर्फ 71,909 वोट मिले। 2013 में भी जदयू ने उम्मीदवार उतारे। तब 22 उम्मीदवारों ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन जमानत सिर्फ एक उम्मीदवार की बची। हालांकि, 2008 की तुलना में वोट बढ़ा। 2013 में जदयू को मध्यप्रदेश में 85 हजार से अधिक वोट मिले।
2018 में नहीं उतारा उम्मीदवार
2013 में भी मध्यप्रदेश में खास प्रदर्शन नहीं कर सकी जदयू ने 2018 में कोई उम्मीदवार नहीं दिया। इसका कारण यह रहा कि 2013 और 2018 के बीच बिहार में कई राजनीतिक बदलाव हो चुके थे। नरेंद्र मोदी की खिलाफत कर 2013 में भाजपा से अलग हो चुकी जदयू ने 2015 में राजद के साथ सरकार बना ली थी। इसके बाद 2017 में भाजपा और जदयू दोबारा दोस्त बन चुके थे और शरद यादव पार्टी से बाहर हो गए। शरद यादव की गैरमौजूदगी में जदयू ने रिस्क नहीं लिया और 2018 में मध्य प्रदेश में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा।
राजद और लोजपा भी रहे हैं फेल
ऐसा नहीं है बिहार से सिर्फ जदयू को मध्यप्रदेश में इंटरेस्ट रहा है। राजद और लोजपा ने भी अलग अलग चुनावों में प्रत्याशी उतारे, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। 1998 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजद के 10 उम्मीदवार उतरे। किसी उम्मीदवार की जमानत नहीं बच पाई। 2003 में राजद के तीन और 2008 में चार उम्मीदवार खड़े हुए। किसी की जमानत नहीं बची। इसके बाद 2013 में राजद ने मध्यप्रदेश से तौबा कर ली। लोजपा ने 2013 में 28 उम्मीदवार उतारे लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई।
मध्यप्रदेश में खंड-खंड I.N.D.I.A., जदयू ने भी उतारे 5 उम्मीदवार