पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए पिछले आठ सालों में सबसे मुश्किल वक्त अभी है। भगवंत मान वो नेता हैं, जो नई-नवेली पार्टी से चुनाव लड़ने के बाद भी जीत का रिकॉर्ड बना चुके हैं। लेकिन अब उनकी पार्टी पुरानी हो चुकी है। लोकप्रिय भी है। दो राज्यों में सरकार भी है। लेकिन भगवंत मान वो संगरुर सीट नहीं बचा सके, जो उनका गुरुर थी। हालत ऐसी हो गई है कि राजनीति के एक प्लेटफॉर्म पर AAP और RJD एक साथ दिख रहे हैं।
लगातार दो बार जीते
2014 के चुनाव में जब मोदी लहर ने कांग्रेसी और दूसरे विपक्षी दिग्गजों को अपनी सीट से पैदल हो जाना पड़ा, भगवंत मान ने संगरुर से जीत दर्ज की। तब आम आदमी पार्टी की न दिल्ली में सरकार थी और न ये पार्टी पुरानी थी। आम आदमी पार्टी को लोकसभा में चार सांसद मिले और चारों पंजाब से ही। 2019 में मोदी लहर का उफान और बढ़ा लेकिन संगरुर में भगवंत मान का गुरुर बरकरार रहा। तब भी देश भर में आम आदमी पार्टी को एक ही सीट मिली और वो भी पंजाब से।
सरकार बनाने के बाद मिला झटका
2022 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भी सरकार बना ली। सीएम बन गए पार्टी के इकलौते लोकसभा सांसद भगवंत मान। उपचुनाव हुए तो यह लोकसभा में आम आदमी पार्टी की इकलौती सीट भी हाथ से निकल गई। यानि जब पार्टी के पास कुछ नहीं था, तब भी जीतते रहे। आज दो राज्यों में सरकार होने के बाद भी इकलौती लोकसभा सीट आम आदमी पार्टी नहीं बचा सकी।
AAP का RJD वाला संयोग
अब आप सोच रहे होंगे कि बात तो पंजाब चुनाव की हो रही है तो बिहार के राष्ट्रीय जनता दल का जिक्र कैसे आ रहा है। अपनी सोच के घोड़ों को थाम लीजिए क्योंकि तेजस्वी और राजद का पंजाब की राजनीति से अभी तक कोई जुड़ाव नहीं हुआ। बल्कि एक उपचुनाव की हार ने आम आदमी पार्टी को राजद वाली स्थिति में ही पहुंचा दिया है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि दोनों ही पार्टियों के पास लोकसभा में पहले सांसद थे और अब नहीं हैं। राजद 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट जीत नहीं सकी थी और आम आदमी पार्टी ने 2019 में जीती एकमात्र सीट 2022 के उपचुनाव में गंवा दी।
RJD से बड़ी हो गई AAP!
वैसे कोई कुछ भी कहे, कागजी सियासत पर अभी एक बात तो पक्की है कि आम आदमी पार्टी का ओहदा कांग्रेस से बड़ा अभी भी है। AAP सिर्फ मुश्किल से 10 साल पुरानी पार्टी है। लेकिन दो राज्यों, दिल्ली और पंजाब, में पूर्ण बहुमत की सरकार है। गोवा में भी इनके विधायक हैं। राज्यसभा में आठ सांसद हैं। जबकि 25 साल पुराने राजद के पास राज्यसभा में चार ही सांसद हैं। बिहार के 75 विधायकों के अलावा झारखंड में सिर्फ एक विधायक है।