पिछले दो लोकसभा चुनावों में विपक्ष के दलों की परफॉर्मेंस लगातार खराब हुई है। लेकिन दो चुनावों में खराब हो गई तो तीसरे चुनाव में सुधरेगी नहीं, यह कहना तो असंभव है। 2024 में राजनीति के इसी संभावनाओं का खेल पुख्ता करने की कोशिश में एक बार फिर विपक्षी एकता का शिगूफा उठा है। बिहार के CM नीतीश कुमार इसका अगुवा बनने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उनका यह प्रयास कितना सफल होगा, अभी यह कहना मुश्किल है। क्योंकि नरेंद्र मोदी से तो वे तब लड़ पाएंगे जबकि भाजपा के विपक्षी पार्टियों को एक कर पाएंगे। फिलहाल उन्हें ममता बनर्जी से ही वाक ओवर मिलना मुश्किल लग रहा है।
‘ममता ने शुरू की थी विपक्षी एकता की मुहिम’
नीतीश कुमार को विपक्ष का पीएम पद के लिए उम्मीदवार बनाने की मांग इसलिए हो रही है क्योंकि यह दावा किया जा रहा है कि वे विपक्ष के दलों को एकसाथ कर रहे हैं। जबकि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस इससे इत्तफाक नहीं रखती। मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में TMC के राष्ट्रीय प्रवक्ता कीर्ति झा आजाद ने बताया कि विपक्ष की एकता के लिए 2019 के बाद से ही ममता बनर्जी ने प्रयास शुरू कर दिया था। नीतीश को तो एक महीना भी नहीं गुजरा है।
भाजपा के साथ ही नीतीश का बीता है वक्त : कीर्ति आजाद
पूर्व सांसद कीर्ति आजाद को नीतीश कुमार पर उतना भरोसा नहीं है। उनका कहना है कि नीतीश कुमार ने जो भी हासिल किया है वो भाजपा के साथ ही किया है। एक महीना पहले नीतीश ने विपक्ष की एकता की बात शुरू की है। आगे देखना होगा कि बाकि दल क्या कहते हैं, क्या सोचते हैं।
‘महंगाई, झूठ, कपट के खिलाफ है लड़ाई’
कभी भाजपा के सांसद रहे कीर्ति आजाद आज भाजपा की नीतियों की खुल कर खिलाफत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सवाल अभी यह नहीं है कि नेता कौन बनेगा। बल्कि सवाल एक ही है कि कैसे महंगाई, बेरोजगारी, झूठ, कपट, जुमले की पार्टी कैसे हटाई जाए। नेतृत्व तय कर लिया जाएगा।