नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आठवीं बार 10 अगस्त 2022 को शपथ लेंगे। इसके बाद उनकी अंतरात्मा कुछ दिनों के विश्राम पर चली जाएगी। हाल के वर्षों में ऐसा देखा गया है कि नीतीश कुमार पलट जाते हैं। कारण कई गिनाते हैं। ताजा उलट-पलट को उनकी अंतरात्मा से जोड़कर देखा जा रहा है। तो, सब कहने लगे हैं, नीतीश नहीं पलटते, उनकी अंतरात्मा पलट जाती है।
बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो… तेज रफ्तार तेजस्वी सरकार हो, नीतीशे कुमार… बीजेपी को दोस्त बनाते फिर मारते दुलत्ती चार हो, नीतीशे कुमार हो। अब आप सोच रहे हैं, क्या तुकबंदी है ये। लेकिन ये हम तुकबंदी नहीं कर रहे, सोशल मीडिया के ट्वीटवीरों का काम है। हम तो बस उसकी बानगी पेश कर रहे हैं। जबसे नीतीश जी ने पलटी मारी है… सॉरी, सॉरी उनकी अंतरात्मा ने पलटी मारी है, सोशल मीडिया कुछ बौरा सा गया है।
‘रीमेक किंग’ : नीतीश कुमार
सोशल मीडिया में 2015 वाले ‘बिहार में बहार हो’ गाने का रीमेक-रीमेक ठोके जा रहा है। हां, रीमेक से याद आया। रीमेक तो बिहार की सत्ता में बन रही है। महागठबंधन पार्ट टू। सवाल करने वाले कर रहे हैं क्या बदला, जो नीतीश जी बदल गए। जिस IRCTC घोटाले के बरअक्श नीतीश जी ने महागठबंधन और तेजस्वी को सत्ता से बेदखल किया था। क्या कुछ बदला क्या? जवाब ढूंढ़ने जाएंगे तो आपको न में मिलेगा। हाल ही में इस घोटाले की जांच के बीच लालू के चहेते भोला यादव ED की रडार पर हैं। जमीन लेकर भर्ती कराने के आरोप है। लालू के रेल मंत्री रहते खेल का आरोप है। यही कुछ मामला तब तेजस्वी पर बना था, नीतीश जी चल निकले थे। मतलब, मामला घोटालों का नहीं है।
नीतीश कुमार का ट्रिपल सी
फिर याद कीजिए, अगस्त 2017 का वो दौर। ट्रिपल सी के सहारे अपने निर्णय को सही साबित करने की कोशिश। नीतीश समझाते थे, सी से Corruption, सी से Communalism और सी से Crime, के मसले पर कोई समझौता नहीं करेंगे। तो आज क्या बदला, करप्शन चार्जेज लालू परिवार पर अभी भी लगे हैं। क्राइम के मसले पर हाल के दिनों में अगर किसी ने नीतीश सरकार को घेरा है तो वह तेजस्वी यादव हैं। हां, कम्युनलिज्म का मसला राजद के साथ नहीं बनता है। लेकिन, इस मसले पर भाजपा ने भी बिहार में अपने हथियार नीतीश कुमार के सामने डाल रखा था। तो फिर बच जाती है अंतरात्मा। उसी को दोष दीजिए और इतिहास के आइनों में टटोलने की कोशिश करिए, कब-कब नीतीश जी की अंतरात्मा बेचैन हुई और उसने अपने लिए नया ठिकाना तय कर लिया।
16 जून 2013
मुझे याद आता है, 16 जून 2013 का वह दिन। अचानक से ऑफिस में खबर आई कि नीतीश कुमार इस्तीफा देने वाले हैं। आखिर क्यों? सवाल उठा तो कहा गया कि भारतीय जनता पार्टी के गोवा अधिवेशन की खबरों को नहीं देखा क्या? जून 2013 के पहले सप्ताह में भाजपा का गोवा अधिवेशन था। पार्टी के नेताओं की राह गोवा थी तो आडवाणी को पेट की बीमारी ने आ घेरा था। बीमार आडवाणी ने इस्तीफे की पेशकश कर दी। यशवंत सिन्हा भी उनके साथ हो लिए। और भी कई सीनियर नेता। फिर भी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष घोषित कर दिया। 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भ में नीतीश कुमार को यह कतई मंजूर नहीं था। एक सप्ताह के भीतर उन्होंने सरकार भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा दिया और अपनी सरकार चलानी शुरू कर दी। यह पहला मौका था, जब नीतीश कुमार की अंतरात्मा जागी थी। इसके बाद तो कई बार कुलबुलाती रही।
19 मई 2014
नीतीश कुमार की अंतरात्मा 2010 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत से उत्साहित थी। तब पार्टी को 115 सीटों पर जीत मिली थी। बहुमत के आंकड़े से 7 कम। वह तो आसानी से जुगाड़ लिया गया था। लेकिन, सुशासन वाली छवि और नरेंद्र मोदी विरोध के बाद भी लोकसभा चुनाव 2014 में महज 2 सीटों पर जदयू की जीत ने उनकी अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। हार स्वीकार नहीं कर पाए। इस्तीफे का फैसला लिया। 19 मई 2014 का दिन था। राजभवन पहुंचे। इस्तीफा दिया और मंथन करने की बात कही। 20 मई को उनके सिपाहसलार माने जाने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई। नीतीश राजनीतिक खटवास-पटवास पर चले गए। और मांझी जम गए। जिसे रबर स्टांप समझा था, वह खुद के हाथों में स्टांप ले बैठा। अबकी अंतरात्मा ने झकझोरा। ये तो गलत हो गया।
21 फरवरी 2015
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद नीतीश कुमार अपने राजनीतिक दुश्मन लालू प्रसाद यादव के करीब आ गए। सलाह मिली, सत्ता संभाल लो। वरना, गद्दी हाथ से निकल जाएगी। बस 9 महीने में ही नीतीश जी की अंतरात्मा ने राजनीतिक सन्यास को तोड़ सत्ता वाली राजनीति में आने की इजाजत दे दी। जीतन राम मांझी का इस्तीफा कराया। 21 फरवरी 2015 को दोबारा प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गए।
महागठबंधन
नीतीश ने महागठबंधन किया। अक्टूबर-नवंबर 2015 का चुनाव महागठबंधन के तहत लड़ा गया। जिस लालू विरोध के जरिए बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे। वही, लालू प्रसाद यादव उनका राजतिलक करते दिखे। नीतीश कुमार साथ लेकर इतराते। सामाजिक समीकरण का ऐसा ताना-बाना बुना गया कि अक्टूबर-नवंबर 2015 के चुनाव में भाजपा औंधे मुंह गिरी। महागठबंधन सत्ता पर काबिज हुआ। नीतीश सीएम बने। लालू परिवार 10 साल बाद सत्ता में लौटी तो सत्ता की ठसक और धमक दोनों दिखने लगी। फिर, नीतीश की अंतरात्मा ने कुलबुलाना शुरू किया। आईआरसीटी घोटाला तो बहाना था, असली कुलबुलाहट का कारण पथ निर्माण और स्वास्थ्य विभाग की फाइलों का देशरत्न मार्ग जाना था।
27 जुलाई 2017
नीतीश कुमार की आत्मा की कुलबुलाहट बढ़ती गई। पलट नहीं पाई। मौका ही नहीं मिल पा रहा था। मौका आया, 5 जनवरी 2017 को। सिखों के 10वें गुरू गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व के मौके पर नीतीश और पीएम मोदी गांधी मैदान के एक मंच पर थे। मुलाकात ने नीतीश कुमार की अंतरात्मा ने पलटना शुरू किया। पुस्तक मेले के एक कार्यक्रम के दौरान कमल के फूल में रंग भरते नजर आए। 2015 की हार से बेजार भाजपा के बेरंग कमल में 27 जुलाई 2017 को असल सत्ता का रंग भर दिया। कारण अंतरात्मा की आवाज ही बताया था। भरोसा न हो तो उस समय का प्रेस कांफ्रेंस सुन लीजिए।
चुनाव से घाव
2020 के चुनाव ने नीतीश कुमार को गहरी चोट दी। पहले तो वोटरों, ने फिर भाजपा ने। साथी और हर फैसले के पीछे चट्टान की खड़े रहने वाले सुशील कुमार मोदी को बिहार की सरकार से बाहर का रास्ता भाजपा ने दिखाया। फिर, भाजपा नेता, मंत्री उनके सामने बोलने लगे। जो भाजपा पीछे में हाथ बांधकर खड़ी रहती थी, उसके नेता बोल रहे थे। चाहे विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा हों, मंत्री रामसूरत राय हों या विधायक बचौल। हर किसी के बोल ने उनकी अंतरात्मा को घाव दिया। 9 अगस्त को उनकी अंतरात्मा ने अब इस ठिकाने पर रहने से इनकार कर दिया। 21 महीने साथ किसी प्रकार चला और फिर अंतरात्मा ने पलटी मार दी। अंतरात्मा नए जगह पर गई है। देखिए लालू प्रसाद यादव के सांप-केंचुली वाले उस बयान का कुछ असर नीतीश जी की अंतरात्मा पर पड़ता है या नहीं।