बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब पहले जैसे नहीं रहे। अपने फैसलों के नतीजे की परवाह किए बिना नीतीश कुमार ने कई मौकों पर यह साबित किया है कि अपनी खिलाफत करने वालों को बख्शते नहीं हैं। लेकिन अब वो हालात भी नहीं रहे और शायद खुद नीतीश कुमार भी ऐसे न रहे। पिछले कुछ महीनों में नीतीश कुमार के सामने कई ऐसे मौके आए हैं, जब नीतीश कुमार असहाय से दिखे हैं। असहाय इसलिए क्योंकि ये उनकी फितरत नहीं है कि वे अपना विरोध करने वालों पर कोई कार्रवाई न करें। लेकिन नीतीश कुमार अपने ही मंत्रियों के साथ थोड़े संकोची दिख रहे हैं। पहले उनके मंत्रिमंडल के मंत्री कई बार इस्तीफा दे चुके हैं लेकिन अब नीतीश थोड़े लिबरल दिख रहे हैं। कार्तिक कुमार से इस्तीफा लेने में भी देरी हुई। सुधाकर सिंह ने भी इस्तीफा देने में वक्त लगाया। अब शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर सीएम नीतीश के मनमाफिक व्यवहार नहीं करने के बावजूद पद पर बने हुए हैं।
जीतन राम मांझी व उनके बेटे की बढ़ेगी मुश्किल, कामों की जांच के निर्देश जारी
पहले कार्तिक कुमार पर लगे आरोपों के बावजूद नीतीश कुमार ने कोई कार्रवाई नहीं की। सुधाकर सिंह भी खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ बोलते रहे, लेकिन नीतीश कुमार शांत ही रहे। इन दोनों ने तो इस्तीफा देकर नीतीश कुमार को सहज स्थिति में ला दिया। लेकिन शिक्षामंत्री चंद्रशेखर पर नीतीश कुमार को अब भी झेंपना पड़ रहा है। चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को लेकर विवाद खड़ा किया तो नीतीश कुमार सख्त नहीं बन पाए। बस इतना ही कहते रहे कि किसी भी धर्म के बारे में बयान देना, उस पर टिप्पणी करना बिल्कुल गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए। अब एक बार फिर चंद्रशेखर और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक में हुई तनातनी पर भी नीतीश कुमार चंद्रशेखर को समझा नहीं पा रहे। राजद चंद्रशेखर के पक्ष में खड़ा है तो नीतीश कुमार की पार्टी जदयू केके पाठक के पक्ष में खड़ी है। लेकिन केके पाठक को परोक्ष समर्थन देने के बाद भी नीतीश कुमार विवादों पर पर्दा नहीं डाल पा रहे। जबकि इतिहास में कई किस्से हैं, जब नीतीश कुमार ने जरा-जरा सी बात पर बड़े बड़े फैसले लिए हैं।
नीतीश कुमार के वो कड़े फैसले जो आज भी मशहूर हैं
- खींच ली थी ‘थाली’ बात 2010 की है जब जदयू और भाजपा साझीदार थे। दोनों बिहार में पांच साल सत्ता चला चुके थे और दूसरे चुनाव में जाने वाले थे। जून 2010 में भाजपा के कार्यकारिणी की बैठक पटना में हुई। तब सीएम नीतीश कुमार ने भोज पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को आमंत्रित किया। लेकिन जिस दिन शाम में भोज था, उस दिन अखबारों में एक विज्ञापन ने नीतीश कुमार को परेशान कर दिया। उस विज्ञापन में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की एक साझा तस्वीर थी, जो पुरानी रैली की थी। नरेंद्र मोदी उन दिनों गुजरात के सीएम थे। लेकिन गोधरा कांड को लेकर नीतीश कुमार ने कभी नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं किया। विज्ञापन से ही नीतीश कुमार इतने नाराज हो गए कि उन्होंने आमंत्रित करने के बाद भोज को कैंसिल कर दिया गया। तब भाजपा नेताओं को ऐसा ही लगा जैसे सामने से थाली खींच ली गई हो।
- गठबंधन तोड़ किया बर्खास्त : दूसरी घटना भी भाजपा के साथ ही घटी। 2010 में अपमान का घूंट पीने के बाद भी भाजपा नीतीश कुमार के साथ सरकार में बनी रही। लेकिन यह साथ 2013 तक ही रहा। जून 2013 में भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय प्रचार समिति का प्रमुख बना दिया गया। मतलब साफ था कि 2014 में नरेंद्र मोदी ही भाजपा के पीएम उम्मीदवार बन गए। लेकिन यह बात भाजपा के सहयोगी जदयू के नीतीश कुमार को चुभ गई। उन्होंने भाजपा के साथ 17 सालों पुराना गठबंधन तोड़ दिया। नीतीश कुमार ने गठबंधन ही नहीं तोड़ा 16 जून को उन्होंने बिहार सरकार में भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त भी कर दिया। इसके बाद अगस्त 2013 में ही 8 मंत्रियों को बंगला खाली करने का भी नोटिस जारी कर दिया।
- डिप्टी सीएम पर आरोप के बाद गिरा दी सरकार : जुलाई 2017 में सीएम नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया। यह उन्होंने तब किया जब नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का नाम लैंड फॉर जॉब स्कैम में सामने आया। नीतीश कुमार ने इस्तीफा देते समय कहा कि उन्होंने तेजस्वी यादव से सफाई देने को कहा था, जो उन्होंने नहीं दिया। नीतीश कुमार के जवाब में लालू यादव ने कहा कि सफाई देने को कहा तो सफाई कोर्ट में देना होता है और वो तेजस्वी दे रहे हैं। इन तमाम घटनाओं के बीच नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि इस्तीफे के अगले ही दिन भाजपा के समर्थन से नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बन गए।
मंत्रियों का इस्तीफा लेने में माहिर
नीतीश कुमार की सरकार में मंत्रियों पर जब भी आरोप लगे, उन्हें इस्तीफा देना ही पड़ा था। दो मामले तो ऐसे थे जिसमें नीतीश कुमार ने हफ्ते भर का भी भी इंतजार नहीं किया और मंत्री से इस्तीफा ले लिया। इसमें 2005 में जीतन राम मांझी से मंत्री बनने के 24 घंटे में ही इस्तीफा ले लिया गया। तब जीतन राम मांझी को उनका विभाग भी आवंटित नहीं हुआ था। जबकि 2020 में मेवा लाल चौधरी ने शिक्षा मंत्री बनने के तीन दिन बाद ही इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा आरएन सिंह, रामाधार सिंह, अवधेश कुशवाहा और मंजू वर्मा ने भी विभिन्न आरोपों के बाद इस्तीफा दिया था।
- बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी 2005 में नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल हुए। शपथ लेने के महज 24 घंटे के अंदर जीतन राम मांझी ने 25 नवंबर 2005 को मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। क्योंकि लालू प्रसाद की सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री रहे जीतन राम मांझी पर डिग्री घोटाले की आंच आई थी। हालांकि इस मामले में आरोप मुक्त होने के बाद वे वापस मंत्रिमंडल में शामिल हो गए।
- 2008 में एनडीए की सरकार के परिवहन मंत्री रामानंद सिंह को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि साल 1990 में निगरानी ब्यूरो ने उनके विरुद्ध चार्जशीट दायर की थी। एक वक्त में मुजफ्फरपुर थर्मल पावर स्टेशन में फ्यूएल टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में काम कर रहे रामानंद सिंह पर खराब क्वालिटी की पाइप की खरीदारी का आरोप था। इसी मामले के उठने पर आरएन सिंह को 17 मई 2008 को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में जांच हुई, जेल गए, रिहा हुए तो फिर वापस मंत्री बन गए।
- भाजपा के कोटे से नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल रामाधार सिंह को भी इस्तीफा देना पड़ा था। कोर्ट द्वारा फरार घोषित होने के बाद मंत्री रामाधार सिंह को 19 मई 2011 को इस्तीफा देना पड़ा। उन पर चुनाव के समय दंगा फैलाने का आरोप था। हालांकि इस मामले में रामाधार सिंह कोर्ट से बरी हो गए और फिर मंत्रिमंडल में शामिल हो गए।
- स्टिंग ऑपरेशन में घूस लेते पकड़े जाने के बाद तत्कालीन निबंधन उत्पाद मंत्री अवधेश कुशवाहा को भी डिफेंड करने की कोई कोशिश नहीं हुई। 11 अक्टूबर 2015 को अवधेश कुशवाहा ने इस्तीफा दे दिया था।
- नीतीश सरकार में मंत्री रही मंजू वर्मा का नाम जब मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में उभरा तो नीतीश कुमार ने उनसे भी इस्तीफा ले लिया। 08 अगस्त 2018 को मंजू वर्मा ने नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
- जीतन राम मांझी के बाद सबसे जल्दी इस्तीफा देने वाले मंत्री का नाम मेवालाल चौधरी है। 2020 में एनडीए सरकार बनने पर मेवालाल चौधरी को नीतीश कुमार ने शिक्षा मंत्री बना दिया। लेकिन तीन दिन के अंदर ही 19 नवंबर 2020 को मेवालाल को इस्तीफा देना पड़ा। वह भर्ती घोटाले में आरोपी थे।