Bihar के CM Nitish Kumar पिछले दो सालों से लगातार राजनीतिक गिरावट की तरफ हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि इन दो सालों में न सिर्फ जनता ने उनके ‘विकास पुरुष’ वाली छवि को समर्थन देने से इनकार किया है, बल्कि उनके करीबियों ने भी उनसे किनारा किया है। बात 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों की करें तो नीतीश कुमार दूसरे नंबर की पार्टी से तीसरे नंबर वाली पार्टी के नेता बन गए। सीएम तो वे बन गए लेकिन उनकी राजनीतिक मजबूती कहीं न कहीं गिरी है। इसके बावजूद नीतीश कुमार 10 बाद यह कहने का साहस रखते हैं कि भाजपा के सामने वे झुकने वाले नहीं हैं।
हालांकि इसके पहले 2013 में भी भाजपा के साथ जाने से बेहतर मिट्टी में मिल जाने को बताया था। लेकिन 2017 में वे भाजपा से जा मिले। 10 साल बाद एक बार फिर वही स्थिति दुहराई जा रही है। लेकिन नीतीश आज की हालत में भाजपा सामने सीना तान कर खड़े क्यों है, इसके पीछे कई कारण हैं।
नेता छोड़ रहे साथ, पर Nitish नहीं छोड़ रहे आस, फिर भरेंगे विपक्षी एकता में सांस
नीतीश के कांफिडेंस का कारण व राज
- पहला कारण : नीतीश कुमार अभी भाजपा के खिलाफ में बिहार में महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। 2015 में भी लगभग ऐसी ही राजनीतिक स्थिति थी। तब भाजपा इस महागठबंधन के सामने पूरी तरह फेल हुई थी। नीतीश कुमार के कांफिडेंस का सबसे बड़ा कारण यही है कि उन्हें 2015 के चुनाव परिणामों पर भरोसा है।
- दूसरा कारण : केंद्र में भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में है। ऐसे में उन्हें 10 सालों के बाद एंटी इनकम्बेंसी की भी उम्मीद है। पूरे विपक्ष को लग रहा है कि 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने सत्ता हासिल की। 2019 में मोदी की सुनामी में सत्ता में वापसी करने में भाजपा सफल रही। लेकिन 10 सालों में कुछ तो ऐसा है ही जिससे लोग नाराज हो सकते हैं।
- तीसरा कारण : 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद 2019 तक विपक्ष पूरी तरह बिखर गया। बंगाल जैसे राज्य में भी भाजपा ने न सिर्फ इंट्री की बल्कि सीटें भी बटोरीं। बिहार में 1 सीट को छोड़कर हर सीट एनडीए के पास गई, जिसके हिस्सेदार नीतीश कुमार और जदयू भी थे। लेकिन अब जदयू अलग है। बंगाल में ममता बनर्जी सजग हैं। ऐसे में इन राज्यों से भाजपा को निराशा हाथ लग सकती है।
बिहार में नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिति
- 2005 विधानसभा चुनाव : फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिलीं। वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ कर 55 सीटें जीतीं। जबकि भाजपा 103 में से 37 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। कांग्रेस 84 सीटों पर लड़ी और 10 सीटें ही जीत पाई। बहुमत किसी को नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लग गया। 2005 में ही अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। तब जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई। यह नीतीश कुमार को सबसे मजबूत स्थिति में लाने वाला चुनाव साबित हुआ। जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं। वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ सीटें ही जीत पाई।
- 2010 विधानसभा चुनाव : नीतीश कुमार की अगुवाई में पांच साल सरकार चलने के बाद साल 2010 में हुए चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसमें जदयू ने 141 में से 115 सीटें और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीती। राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 22 सीटें ही मिली। लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटों पर सिमट गई। जबकि कांग्रेस को सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़कर भी चार सीटें ही मिली थीं। इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी बिहार और मजबूत होती दिखी।
- 2015 विधानसभा चुनाव : इस चुनाव में पार्टियों का गणित उलट-पुलट हो गया था। भाजपा का साथ छोड़कर जदयू ने राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पिछले दो चुनावों में नंबर 1 बन कर उभरी जदयू के लिए इस चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे। क्योंकि पार्टी अपने ही सहयोगी दल से पिछड़कर दूसरे नंबर पर आ गई। राजद और जदयू दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। राजद ने 80 सीटें जीतीं, जबकि जदयू को 71 सीटें मिलीं। वहीं भाजपा 53 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं थी।
- 2020 विधानसभा चुनाव : एक बार फिर कमोबेश इस चुनाव में दलों की स्थिति 2010 वाली हो गई। लेकिन यह चुनाव नीतीश कुमार के पॉलिटिकल स्टारडम को सबसे निचले स्तर तक ले आया। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत सिर्फ 43 पर मिली। जबकि भाजपा ने 10 साल बाद नंबर 2 की पोजीशन पर कब्जा कर लिया। भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 सीटें जीतीं। वहीं राजद लगातार दूसरे चुनाव में सबसे बड़ा दल बन कर उभरी और 144 सीटों चुनाव लड़कर 75 सीटें जीतीं। नीतीश कुमार की पार्टी चुनाव में अपनी इस हालत के लिए चिराग पासवान और भाजपा को दोषी मानती है। नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि भाजपा ने शह देकर चिराग पासवान से उनके उम्मीदवारों को हरवाया।