बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन तो बदल लिया है, लेकिन चुनौतियां कम होने की बजाय बढ़ गई हैं। आधिकारिक तौर पर तो तय नहीं है लेकिन नीतीश को जानने वाले बताते हैं कि भाजपा से अलग होने का मकसद था 2024 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना है। ललन सिंह ने उनके लिए फार्मूला भी तलाश लिया है कि बिहार, झारखंड, बंगाल से 40 सांसदों की सीटें कम कर देंगे तो नरेंद्र मोदी और भाजपा सत्ता से हट जाएंगे। लेकिन सवाल तब ये उठेगा कि नीतीश ही क्यों? वैसे 2024 से पहले नीतीश चार मोर्चों पर घिर गए हैं। इन चार मोर्चों में कोई एक ही हावी हो गया तो नीतीश कुमार के सपने चकनाचूर हो सकते हैं।
करीबियों की बगावत
पीएम पद तक नीतीश जाएं या न जाएं, उनके पीएम मेटेरियल बनने की कहानी पुरानी है। अर्से से उनकी पार्टी के नेता उन्हें पीएम मेटेरियल बताते रहे हैं। संभवत: नीतीश देश के पहले नेता हैं, जिन्हें पीएम का प्रत्याशी नहीं पीएम मेटेरियल बताया जाता है। उनकी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह भी कभी नीतीश को पीएम मेटेरियल बताते नहीं थकते थे। आज खुलेआम कह रह हैं कि सात जन्म में पीएम नहीं बनेंगे। पूरे बिहार में आरसीपी घूम रहे हैं और नीतीश कुमार को कोस रहे हैं। आरसीपी ने कहा कि चार बार पलटी मार चुके हैं। 1994, 2013, 2017 और 2022 में पलटी मार चुके हैं। अब जदयू का राजद में विलय होगा, कोई विकल्प ही नहीं है। राजद शरणम गच्छामि हो चुके हैं नीतीश।
भाजपा का मैनेजमेंट
नीतीश कुमार का पूरा भरोसा इसी पर है कि वे बिहार में भाजपा की सीटों को नगण्य कर सकेंगे। बंगाल में ममता बनर्जी पूरी ताकत से लड़ें तो वहां भी भाजपा घुटने टेक सकती है। लेकिन नीतीश यह भी जानते हैं कि उनके पाला बदलने से भाजपा न डी-मोटिवेट होगी और न ही उसकी चुनावी कैम्पेनिंग को खास फर्क पड़ता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा बिहार में तब भी बहुत पीछे नहीं थी, जब वो यहां सत्ता में नहीं थी। 2014 में तो यह कहानी सबने देखी ही है। इसके बावजूद नीतीश को लगता है कि 2015 के विधानसभा चुनाव वाला माहौल अगर बन जाए तो भाजपा और नरेंद्र मोदी को बिहार से खाली कटोरा मिल सकता है। लेकिन इस पूरी कवायद में कौन उनके साथ कितनी मजबूती से लड़ेगा, यह भी देखना होगा।
सहयोगियों से सामंजस्य
इस बार जबसे नीतीश कुमार ने पाला बदला है, राजद से उनका भाईचारा फूट फूट कर बाहर आ रहा है। दिल्ली में बैठे आरसीपी सिंह क्या ट्यूनिंग कर रहे हैं, यह नीतीश कुमार जान लेते हैं। लेकिन उस एमएलसी के बारे में नहीं जान पाते, जो मंत्री बना रहा है, यह किसी को पच नहीं रहा है। कार्तिकेय अभी तक नीतीश के कानून मंत्री हैं। इनके चयन ने नीतीश के नए मंत्रिमंडल का मुहूर्त बिगाड़ दिया है। क्योंकि कानून मंत्री ने जिस दिन शपथ ली, उस दिन तक उन्हें हत्या के लिए अपहरण के मामले में अदालत में पेश होना था। मंत्री जी ने तो कह दिया कि कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। लेकिन क्राइम से नो समझौता वाले नीतीश को भारी पड़ रहा है कि ऐसे मुद्दों पर वे सहयोगियों से कैसे सामंजस्य बिठाएं।
दावेदारी नीतीश की ही क्यों?
शुरुआती तीनों मोर्चों पर नीतीश ने लड़ाई पहले भी लड़ी है। बागियों को शांत किया है, भाजपा को चुनावी मैदान में धूल चटाई है, राजद वाले एंगल की डीलिंग भी करते रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर 2024 में नीतीश ही पीएम पद के दावेदार क्यों होंगे? बंगाल में ममता ने अधिक सीटें जीत लीं, तो ममता क्यों नहीं हो सकती? यूपी में तो अखिलेश के पास खुला मौका है। अधिक सीटें जीत गए तो वे क्यों नहीं? और सबसे बड़ा सवाल कांग्रेस का होगा कि क्योंकि ये क्षेत्रीय दल चाहे जितना भी जोर लगा लें, इनमें सबसे अधिक सीटें तो कांग्रेस के पास ही रहेंगी क्योंकि वो एक राज्य में नहीं कई राज्यों में सीटें जीतेगी ही। 2024 के चक्रव्यूह में नीतीश पहले तीन द्वार तोड़ भी दें तो भी चौथा तोड़ना सबसे मुश्किल होगा।