छह महीने बीत गए। 9 अगस्त 2022 को बिहार में दलों की राजनीतिक अंतरात्मा के करवट लेते ही सरकार के साझीदार बदल गए। 2020 के चुनाव के बाद सत्ता की फ्रंट सीट पर न होते हुए भी हॉट सीट पर बैठी भाजपा ऐसा महसूस कर रही थी कि पांच दिनों के टेस्ट मैच में उसे बीच में ही ड्रॉप कर दिया गया। लेकिन भाजपा की जगह राजद ने ले ली थी। जदयू ने भाजपा के साथ का गठबंधन छोड़कर राजद, कांग्रेस, हम और वाम दलों के साथ महागठबंधन में एंट्री कर ली थी। 10 अगस्त 2022 को नई सरकार के ‘मुखिया’ नीतीश कुमार और ‘उपमुखिया’ तेजस्वी यादव के साथ महागठबंधन की सरकार ने सफर शुरू किया। सफर की शुरुआत के साथ ‘बड़ों’ के बड़े सपने पूरा करने का संकल्प भी सामने आ गया। लेकिन छह माह भी नहीं बीते कि सीएम नीतीश कुमार को उस बिहार की समस्याओं के समाधान के लिए समाधान यात्रा शुरू करनी पड़ी। पुराने ‘दुश्मन’, ‘दोस्त’ तो बन गए थे लेकिन दोस्ती दिल से हुई नहीं थी। लिहाजा खटपट भी शुरू हुई। हम आपको इस महागठबंधन सरकार के 6 माह में हुए वो 6 घमासान बता रहे हैं, जिनका समाधान अब तक नीतीश-तेजस्वी सरकार ढूंढ़ नहीं पाई है।
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बगावती साथी
बिहार में महागठबंधन की सरकार बनना जितनी बड़ी राजनीतिक घटना थी, उससे अधिक राजनीति सरकार बनने के बाद भी हो रही है। महागठबंधन के दोनों बड़े दल जदयू और राजद, अपने अपने बागी नेताओं से परेशान हैं। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की मुश्किल विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा ने बढ़ा रखी है। तो राजद पूर्व मंत्री व विधायक सुधाकर सिंह से परेशान हैं। सुधाकर सिंह इस सरकार की शुरुआत में कृषि मंत्री बनाए गए थे। लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तब से अब तक वे महागठबंधन सरकार के मुखिया नीतीश कुमार पर बरस रहे हैं। राजद द्वारा नोटिस देने के बाद भी सुधाकर सिंह के तेवर ढ़ीले नहीं पड़े हैं। तो दूसरी ओर उपेंद्र कुशवाहा को मंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं बनने के मलाल ने उन्हें बागी बना दिया है।
धार्मिक विवाद
वैसे तो महागठबंधन सरकार में शामिल दलों के नेताओं की जुबां पर धर्मनिरपेक्षता हावी रहती है। लेकिन शिक्षामंत्री डॉ. चंद्रशेखर यादव ने रामचरितमानस पर ऐसा बयान दे दिया है कि वो बवाल महागठबंधन सरकार के गले की हड्डी बन गया है। चंद्रशेखर यादव राजद के नेता हैं, जो सरकार में शामिल सबसे बड़ा दल है। लेकिन भाजपा के साथ जदयू ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। कई बार जदयू के नेता इशारों में राजद से चंद्रशेखर यादव पर कार्रवाई की मांग कर चुके हैं। तो दूसरी ओर राजद अपने मंत्री के साथ सीना ठोक कर खड़ा है।
लॉ एंड ऑर्डर
नई सरकार बनने के कारण विपक्ष में आई भाजपा का सबसे बड़ा डर यही दिखा है कि उन्हें लगता है कि बिहार में जंगलराज आ जाएगा। उनका इशारा कानून-व्यवस्था की बदहाली को लेकर रहता है। यह आशंका गाहे-बगाहे सच भी होने लगती है। सारण का शराबकांड, बक्सर में मुआवजा मांग रहे किसानों के साथ पुलिस का दुर्व्यवहार और बेगूसराय में सीरियल फायरिंग की घटनाओं ने सरकार की व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। ये मामले अभी भी जिंदा हैं और नेता अपनी अपनी सहूलियत से इसे उठाते रहे हैं।
शिक्षा व रोजगार
तेजस्वी यादव ने 2020 के चुनाव में ही रोजगार को लेकर बड़ा वादा किया था। उनका वादा था 10 लाख नौकरियां देने का। नई सरकार में सीएम नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के वादे को दोगुना करते हुए कहा कि 20 लाख नौकरियां व रोजगार देंगे। लेकिन बीएसएससी ने जब परीक्षा ली तो पेपर ही लीक हो गया। नतीजा यह हुआ कि पेपर रद्द करना पड़ा। बिहार कर्मचारी चयन आयोग यानी बीएसएससी (BSSC) की तृतीय स्नातक परीक्षा का पेपर लीक हुआ था। जो राज्य के शिक्षित युवाओं को घायल कर गया।
बेलगाम अफसरशाही
जब से बिहार में नीतीश कुमार सीएम बने, कई बार यह आरोप लगे कि उनके अफसर किसी की नहीं सुनते। संयोग रहा कि महागठबंधन सरकार के गठन के कुछ दिनों बाद ही 22 अगस्त को शिक्षक अभ्यर्थियों के प्रदर्शन के दौरान एडीए केके सिंह ने एक कैंडिडेट को बुरी तरह पीट दिया था। इससे अफसरशाही के आरोपों को और बल मिला। वहीं कुछ दिन पहले वरिष्ठ आईएएस अधिकारी केके पाठक का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे बिहारियों को गाली देते सुने गए। फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। होमगार्ड एंड फायर सर्विसेज की डीजी शोभा अहोटकर पर उसी विभाग में आईजी विकास वैभव द्वारा गालियां देने और बिहारी होने के कारण प्रताड़ित करने का आरोप भी लगा।
पॉलिटिकल क्राइसिस
महागठबंधन की सरकार का गठन एक ऐसी राजनीतिक हलचल थी, जिसने बिहार की राजनीति में बेमौसम सुनामी ला दी। महागठबंधन में शामिल दलों को लगा कि उनके सामने विपक्ष में खड़ी भाजपा राजनीतिक तौर पर अकेली पड़ जाएगी, बिखर जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि नई सरकार के गठन के बाद हुए तीन विधानसीटों पर हुए उपचुनाव में दो सीटों पर सरकार में शामिल पार्टियां जदयू और राजद हारीं। इसमें राजद को गोपालगंज में शिकस्त मिली तो जदयू के हाथ से कुढ़नी का उपचुनाव सरक गया। मोकामा सीट पर राजद ने जीत जरुर दर्ज की, लेकिन उस सीट पर भी भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षा से बेहतर रहा।