बिहार के बाहुबली नेता रहे आनंद मोहन रिहा हो जाएंगे। आनंद मोहन सहरसा जेल के कैदी हैं। पैरोल पर जेल से बाहर आने के दौरान ही उन्हें रिहा करने की अधिसूचना जारी हो गई। अब उनकी रिहाई महज कागजी औपचारिकता है। जाहिर तौर पर आनंद मोहन की रिहाई का फैसला उनके परिवार और समर्थकों के लिए खुशखबरी है। लेकिन जिस जी कृष्णैय्या की हत्या के लिए आनंद मोहन दोषी करार दिए गए, उनका परिवार निराश हो रहा है। खीझ आईएएस एसोसिएशन ने भी दिखाई है। तो दूसरी ओर एक स्थिति यह भी है कि उनकी रिहाई से न सत्ता पक्ष को दिक्कत है और न ही विपक्ष को। जदयू-राजद की तो सरकार ही है, उन्हीं का फैसला भी है। भाजपा एक कदम आगे बढ़कर ये कह रही है कि यह तो पहले हो जाना चाहिए। जबकि तीसरा पक्ष ये है कि आखिर आनंद मोहन की रिहाई किसके कारण रुकी थी और अब किसके कारण हो रही है। इसका सीधा जवाब सोशल मीडिया पर खुलेआम तैर रहा है। जवाब सबका एक ही है और वो है नीतीश कुमार।
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नीतीश कुमार ने रोकी थी आनंद मोहन की रिहाई?
दरअसल, बिहार के सीएम नीतीश कुमार की एक फेवरेट लाइन है जो वे अनगिनत बार सार्वजनिक मंचों से दुहरा चुके हैं। वे कहते रहे हैं कि “हम न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं। कानून अपना काम स्वतंत्र रूप से करता है।” नीतीश कुमार की इसी लाइन को अब सोशल मीडिया से लेकर अलग अलग मंचों पर दूसरे तरीके से कहा जा रहा है। उनके बयान का वर्जन अब ऐसे समझा जा रहा है कि “वे न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं। बस कानून ही बदलवा देते हैं।” दूसरी ओर नीतीश कुमार के साथ सालों काम कर चुके उनकी पार्टी के पूर्व प्रवक्ता डॉ. अजय आलोक का दावा है कि नीतीश कुमार ने ही आनंद मोहन की रिहाई रोक रखी थी।
“2012 में कानून आनंद मोहन की रिहाई रोकने का तरीका”
डॉ. अजय आलोक का कहना है कि नीतीश कुमार की सरकार 2012 तक आनंद मोहन को जेल में रखने के लिए हर जतन कर रही थी। उन्होंने एक निजी चैनल पर कहा है कि “2012 में जो कानून लाया गया, वो इसीलिए लाया गया क्योंकि 2017-18 में आनंद मोहन रिहा हो जाते। सरकारी सेवकों की हत्या वालों की सजा पर पुनर्विचार नहीं करने का क्लॉज लगते ही आनंद मोहन की रिहाई फंस गई। उसी क्लॉज को 2023 में हटा दिया गया तो उनकी रिहाई हो गई।” डॉ अजय आलोक ने आगे कहा कि “नीतीश सरकार की पूरी कार्यशैली से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने ही फंसाया था। अब राजनीतिक कारणों से उन्हें निकाला है।”