नीतीश कुमार की PM उम्मीदवारी की चर्चा पिछले दिनों बिहार के राजनीतिक मैदान में खूब उछली। NDA से नाता तोड़कर एक बार फिर महागठबंधन में भागीदार बनने वाले Nitish Kumar को JDU ने अब तक कई बार देश की राजनीति के लिए फिट करार दिया है। लेकिन क्या नीतीश कुमार PM पद की उम्मीदवारी से कट गया है। आप पूछेंगे कि आज ये सवाल क्यों? अचानक ऐसा क्या हो गया कि नीतीश कुमार चर्चा में आ गए हैं? इसके जवाब को जानने के लिए आपको बदलती परिस्थिति को समझना होगा।
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PM मोदी ने विपक्ष को किया फेसलेस
देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले 8 सालों में एक काम बखूबी किया, वह रहा है कि विपक्ष को फेसलेस करना। मतलब, PM नरेंद्र मोदी का विकल्प कौन? इस सवाल का ढूंढ़ने जाएंगे तो दावेदार कई मिलेंगे, लेकिन बराबरी में खड़े चेहरे को ढूंढ़ने में आपको खासी दिक्कत झेलनी पड़ेगी। ऐसे में बिहार की सत्ता में करीब 17 सालों से काबिज नीतीश कुमार का विकल्प खड़ा करने का प्रयास किया गया। लेकिन, उनके साथ सबसे बड़ी दिक्कत है उनका संगठन। नीतीश कुमार ने कभी भी संगठन को विस्तार देने और अपनी एक्सेप्टेंस पूरे देश में बनाने पर कोई जोर नहीं दिया। बिहार की राजनीति में भी लगभग आधे पर सिमटी जदयू के नेता पर राष्ट्रीय स्तर पर दांव कौन लगाएगा? यही सवाल सबसे बड़ा है।
तो फिर मामला PM उम्मीदवारी का मुद्दा क्यों गरमाया?
याद कीजिए, वर्ष 2013- गोवा में भारतीय जनता पार्टी का अधिवेशन चल रहा था। और गर्मी पटना में बढ़ी हुई थी। इस अधिवेशन में भाजपा के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष का ऐलान होना था। तत्कालीन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी रेस में सबसे आगे थे। लेकिन, बतौर एनडीए के नेता के तौर पर नीतीश कुमार खुद को देख रहे थे। इस ऐलान से पहले भाजपा के शीर्ष नेता नाराज हुए। नाराजगी नजरअंदाज किए जाने को लेकर थी। लेकिन, भाजपा की राजनीति में दूसरी पंक्ति के नेता आगे आ रहे थे और पहली पंक्ति के नेताओं को रिटायरमेंट दिए जाने की पटकथा लिखी जा रही थी। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी को पार्टी का नेता चुने जाने की घोषणा की और बिहार की राजनीति बदल गई। नीतीश कुमार NDA के पाले से निकल गए।
नीतीश का अलग होना बनी थी चुनौती
2013 में नीतीश कुमार का यह बिछड़ाव और एनडीए का बिखराव नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती लेकर आया। लेकिन, 2014 का लोकसभा चुनाव परिणाम ने नीतीश के सपने को तोड़ दिया। जदयू लोकसभा चुनाव में 40 सीटों पर लड़ी, 2 सीटें ही जीत सकी। सपना टूटा तो जीतन राम मांझी को सत्ता का खड़ाऊं दे नीतीश अज्ञातवास पर चले गए। 2015 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदलने के लिए लालू का साथ लिया और बिहार की राजनीति को साध लिया। राजद के साथ गए नीतीश कुमार की पार्टी ने जदयू ने तब 71 सीटों पर जीत दर्ज की। राजद 80 सीटों पर जीती। भाजपा 53 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। महागठबंधन की विराट जीत ने भाजपा को भी प्रदेश की राजनीति में अपना स्थान दिखा दिया।
2017 में छोड़ दिया PM बनने का सपना
नीतीश कुमार दो साल बाद 2017 में ही महागठबंधन से नाता तोड़ भाजपा के साथ हो लिए। कारण जो भी रहा हो, लेकिन उन्हें लगने लगा था कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार तो वे महागठबंधन में रहते हुए बन नहीं पाएंगे। लोकसभा चुनाव 2019 में नीतीश और भाजपा की जुगलबंदी काम आई। 40 में से 39 सीटों पर एनडीए जीती। 17 सीटों पर भाजपा, 16 सीटों पर जदयू और 6 सीटों पर लोजपा। भाजपा और लोजपा का परफॉरमेंस 100 फीसदी रहा। जदयू अपने कोटे के 17 सीटों में से एक हारी। इस परिणाम ने नीतीश कुमार की उम्मीद जगाई। जदयू में माना गया कि वे पीएम नरेंद्र मोदी के बाद नंबर टू तो हैं ही। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने स्थिति बदल दी।
2020 में भाजपा के कृपापात्र बन गए नीतीश
विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा और जदयू लगभग समान सीटों पर चुनाव लड़ी और जदयू को भारी नुकसान झेलना पड़ा। भाजपा ने जहां 74 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, जदयू को 43 सीटों पर जीत मिली। प्रदेश की विधानसभा में 75 सीटों के साथ राजद एक बार फिर पहले नंबर की पार्टी बनी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बना दिए गए। लेकिन, भाजपा ने यहां कृपा जैसी स्थिति बना दी। नीतीश कुमार एनडीए में अपनी जो भूमिका देख रहे थे, वह कृपापात्र बनते ही खत्म होने लगी। नीतीश समझ गए कि एनडीए में उनकी स्थिति कुछ वैसी ही है, जैसी 2017 में महागठबंधन में थी। अगस्त 2022 आते-आते नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदल लिया। महागठबंधन के साथ हो गए।
अब क्या बदल गया है?
अगस्त 2022 में बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ। करीब सात राजनीतिक दलों को एक साथ जोड़ने में नीतीश कुमार कामयाब हुए। नीतीश के साथ राजद, कांग्रेस के साथ-साथ वाम दल भी आए। भाजपा को सत्ता से हटाने का फॉर्मूला लेकर तमाम दलों को साधने नीतीश कुमार दिल्ली तक गए। समाजवादी पार्टी, टीआरएस (अब बीआरएस), जेडीएस, एनसीपी समेत तमाम दलों को साधने की कोशिश की, लेकिन सफलता मिलती उन्हें नहीं दिख रही है। वहीं, देश की राजनीति के मुख्य विपक्ष दल कांग्रेस की ओर से अब अलग राजनीतिक समीकरण बनाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। इसने एक बड़ी भीड़ को अपनी तरफ खींचा है। कन्याकुमारी से निकली यह यात्रा अभी यूपी को पार कर हरियाणा में प्रवेश कर रही है। जम्मू कश्मीर तक जाएगी। इस यात्रा का क्या परिणाम होगा? यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन देश की विपक्ष की राजनीति को इस यात्रा ने बड़ा संदेश दे दिया है।
चर्चा में कांग्रेस आई
कांग्रेस को जिस प्रकार से विपक्षी दलों ने हाशिए पर धकेल दिया था। एक बार फिर वह चर्चा में आ गई है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए भाजपा विरोध वाले वोट बैंक के बीच अब राहुल गांधी अपनी छाप छोड़ते दिख रहे हैं। कांग्रेस उन्हें अगला प्रधानमंत्री उम्मीदवार करार दे रही है। पीएम नरेंद्र मोदी के सामने पूरी भारत की यात्रा कर खड़े होने का प्रयास वर्ष 2024 में राहुल गांधी ही करेंगे। ऐसे में बिहार की सत्ता में भागीदार कांग्रेस के साथ चलते हुए नीतीश कुमार को देश में संयुक्त विपक्ष की कमान मिलना मुश्किल है। यही कारण है कि भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर बिहार कांग्रेस ने जब प्रदेश में यात्रा निकलने का निर्णय लिया तो जदयू ने खुद को इससे अलग कर लिया। नीतीश कुमार के लिए यहां एक बार फिर स्थिति बदलती दिख रही है।