राजनीति संभावनाओं का खेल है और गठबंधन लेन-देन का। इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के सामने इस बार गंभीर चुनौती है। चारों तरफ से घिरे हुए दिख रहे हैं। चुनौती विपक्ष से भी है, सहयोगी से भी, खुद के घर से भी। चुनाव आयोग में इनकी विधायकी को लेकर मामला अंतिम मुकाम पर है। राजनीति के मौसम विज्ञानी और गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे पूरे भरोसे के साथ भविष्यवाणी कर चुके हैं कि नवंबर तक बरहेट और दुमका यानी हेमन्त सोरेन और बसंत सोरेन की सीट पर विधानसभा उप चुनाव होंगे। चुनाव आयोग का फैसला हेमन्त के प्रतिकूल होता है, हेमन्त सोरेन की सदस्यता जाती है तो क्या होगा।
भरोसा किस पर करें, यही मुश्किल है
मौजूदा परिस्थितियों पर मंथन के लिए ही शनिवार को यूपीए की बैठक बुलाई गई है। हेमन्त सोरेन के मन में सवाल उठ रहा होगा, सदस्यता जाती है तो मैं नहीं तो कौन। राजनीति में कोई किसी पर भरोसा नहीं करता। परिजनों पर भी नहीं। राजनीति के माहिर लालू प्रसाद इसके उदाहरण हैं। पशुपालन मामले में जब इन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी उनकी पार्टी में एक से एक अनुभवी, वरिष्ठ और उनके भरोसे के आदमी थे। मगर लालू ने भरोसा किया तो सिर्फ अपनी पत्नी पर जो निहायत घरेलू महिला थीं। तो क्या हेमन्त भी लालू की कहानी दोहरायेंगे, उनकी पत्नी ही पहली पसंद होंगी?
भाई बसंत की भी सदस्यता संकट में
घर से बात शुरू करें तो छोटे भाई बसंत की सदस्यता खुद संकट में है, भरोसे का मामला बाद में आता है। बढ़े भाई स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन के साथ रिश्ते जगजाहिर हैं। सीता सोरेन की बेटियों ने अपनी राजनीति महत्वाकांक्षा को लेकर पिता दुर्गा सोरेन के नाम पर अलग सेना बना रखी है। सीता सोरेन की निकटता परिवार में है तो शिबू सोरेन के साथ। खुद शिबू सोरेन की उम्र हो चुकी है। आय के ज्ञात स्रोत से अधिक सम्पत्ति के मामले में लोकपाल की नोटिस आ चुका है। 25 अगस्त को पेश होना है। खेल घोटाले में अदालत के फैसले में भी सवाल उठ चुका है क्योंकि उस समय वे समिति के पदेन अध्यक्ष थे। इन्हें मौका मिला तो भाजपा घेरने के लिए अपने ‘हथियार’ का इस्तेमाल तेज कर सकती है।
नीतीश के प्रयोग से सहमे हैं CM सोरेन?
वैसे तो हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में मंत्री चंपई सोरेन को लेकर भी संभावनाएं देखी जा रही हैं। मगर सवाल भरोसे का है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था तो मांझी के तेवर ही बदल गये। अंतत: मांझी को हटाना पड़ा। बहरहाल संकट को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने अपनी कनाडा यात्रा टाल दी तो कांग्रेस ने अपने विधायकों को रांची में रहने का फरमान जारी कर दिया। झामुमो विधायकों को भी पार्टी ने कह दिया है कि राजधानी से इतनी दूर ही जायें कि चार घंटे में वापस आ सकें।
कांग्रेस के आधा दर्ज विधायकों पर भाजपा की नजर?
हेमन्त सोरेन को चुनौतियां लगातार मिलती रही हैं। सरकार बनने के बाद से हर उप चुनाव और अन्य मौकों पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कहते रहे कि बस सरकार जाने वाली है। सरकार गिराने की साजिश को लेकर चार बार चर्चा हो चुकी है। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और राज्य सरकार में वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने प्रारंभ में ही कहा कि कांग्रेस के आधा दर्जन सदस्यों पर भाजपा डोरे डाल रही है। बेरमो से कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह ने सरकार गिराने की साजिश को लेकर रांची में प्राथमिकी दर्ज कराई तो उस समय भी रेड और जांच आदि के क्रम में इरफान अंसारी, अमित कुमार और उमाशंकर अकेला चर्चा में आये थे। उसी क्रम में कांग्रेस विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ने भी खुलासा किया कि उन्हें ऑफर मिला था।
गठबंधन की कमजोर कड़ी है कांग्रेस
हाल में कोलकाता में तीन कांग्रेस विधायकों की कैश के साथ गिरफ्तारी और विधायक अनूप सिंह की प्राथमिकी ने सरकार गिराने की साजिश को लेकर चल रहे खेल की पोल खोल दी है। तीनों विधायकों को बंगाल की अदालत ने जमानत दे दी है मगर तीन माह तक वहीं रहने का आदेश दिया है। गठबंधन की मजबूती कांग्रेस के विधायक ही कमजोर कड़ी साबित हो रहे हैं। राजनीतिक हलकों में यह बात भी तैरती रही कि राज्यसभा चुनाव में झामुमो द्वारा कांग्रेस को बाइपास किये जाने और राष्ट्रपति चुनाव में गठबंधन से इतर वोटिंग के बाद कांग्रेस दबाव बनाने की मुद्रा में है। वहीं पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस खुद कमजोर कड़ी है, दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है। और हेमन्त तमाम दबावों के बीच अपने वोट को सुरक्षित रखने वाले तमाम फैसले लगभग कर चुके हैं। ऐसे में उन्हें बहुत चिंता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला है
चुनाव आयोग हेमंत सोरेन की सदस्यता खत्म भी करता है तो सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला है। वैसे बिना विधायक रहे भी छह माह तक कुर्सी पर वे कायम रह सकते हैं। सूत्रों ने भरोसे के साथ कहा कि हेमन्त के विकल्प सिर्फ हेमन्त हैं। किसी दूसरे नाम पर कोई चर्चा नहीं है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में चुनाव का मौका भी आता है तो झामुमो इसके लिए मजबूती के साथ तैयार है। जहां तक अंक गणित का सवाल है 81 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 सदस्यों की दरकार होगी। भाजपा के पास सीधे तौर पर बाबूलाल मरांडी मिलाकर 26 और दो आजसू के सदस्य हैं। दो निर्दलीय का भी साथ है। मगर बहुमत की गाड़ी अभी दूर है।