गुजरात हाईकोर्ट ने मोदी सरनेम केस में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की 2 साल की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि राहुल गांधी पर तो ऐसे ही कम से कम 10 मामले चल रहे हैं। इस स्थिति में सूरत कोर्ट का ही फैसला लागू रहेगा। इस फैसले के साथ ही राहुल गांधी के राजनीतिक कॅरियर पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया। वैसे तो राहुल गांधी के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का भी रास्ता बचा हुआ है। लेकिन मौजूदा स्थिति में कम से कम 8 साल राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। यानि मौजूदा परिस्थिति में 2024 और 2029 के चुनावी समर से राहुल गांधी को लाल कार्ड दिखा दिया गया है। जैसे ही हाईकोर्ट का फैसला आया, कांग्रेसी खेमे में मायूसी छा गई होगी। वे कितना भी मजबूत दिखने की कोशिश करें, मलाल तो रहेगा ही कि राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। लेकिन एक स्थिति और बनी है कि राहुल गांधी को सजा मिलने से भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए चुनौती अब कहीं बड़ी हो गई है।
राहुल गांधी को लगा बड़ा झटका, दो साल की सजा बरकरार
अब तक चुनौतियों को देखकर स्ट्रेटजी बनाती रही है भाजपा
पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने वो जीत दर्ज की है, जो उसके इतिहास में कभी नहीं आई थी। पूर्ण बहुमत की सरकार तो भारतीय लोकतंत्र में भी पुरानी पड़ चुकी बात हो गई थी। लेकिन मनमोहन सिंह की 10 साल पुरानी सरकार के सामने भाजपा ने नरेंद्र मोदी को खड़ा किया। 2014 में नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह को कम बोलने वाला पीएम साबित करते हुए कांग्रेस को सबसे बुरे हाल में ला दिया। इसके बाद 2019 में नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी थे, जिनकी अनुभवहीनता को भुनाते हुए भाजपा ने बहुमत का आंकड़ा आसानी से पार किया। चूंकि राहुल गांधी ने अपने अब तक के राजनीतिक कॅरियर में सांसद से ज्यादा कोई जिम्मेदारी ली नहीं है। लिहाजा विकास के मानकों पर हाई स्टैंडर्ड वाले गुजरात के सीएम से पीएम बनने का सफर नरेंद्र मोदी के लिए मुश्किल भरा नहीं रहा।
अब आसान नहीं होगी राह
2014 और 2019 की आसान जीत के नायक तो नरेंद्र मोदी थे लेकिन एक फैक्टर यह भी काम कर रहा था कि नरेंद्र मोदी ने कमजोर नेतृत्व को अपना विरोधी बनाए रखा था। भाजपा के नेता बार बार यही कहते कि एक ओर नरेंद्र मोदी हैं, जो एक दशक से अधिक वक्त तक गुजरात के सीएम रहे हैं। तो दूसरी ओर राहुल गांधी हैं, जिन्होंने 10 सालों के यूपीए सरकार में किसी विभाग को संभालने की भी जिम्मेदारी नहीं उठाई। 2014 में तो फिर भी ठीक था, लेकिन 2019 में अमेठी हार ने राहुल को और मुश्किल में ला दिया। लेकिन अब अगर राहुल गांधी चुनावी समर से बाहर हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर कांग्रेस और विपक्ष नए चेहरे पर दांव लगाएगा। इस नए चेहरे से पार पाना भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि उनकी तथाकथित कमजोर विरोधी वाली स्ट्रेटजी हो सकता है काम न आए। नई स्ट्रेटजी बनानी होगी, जिसके लिए वक्त कम पड़ सकता है।
नीतीश के लिए खुल गया रास्ता?
2024 के लोकसभा चुनाव को भाजपा के लिए मुश्किल बनाने का प्रयास कई स्तर पर हो रहा है। कांग्रेस ने जो स्ट्रेटजी अपने बूते बनाई है वो अलग है। इसके अलावा विपक्षी दलों को एक कर भाजपा के खिलाफ चक्रव्यूह तैयार करने की योजना भी है। चक्रव्यूह के सूत्रधार बिहार के सीएम नीतीश कुमार हैं। लेकिन उनकी पीएम पद के लिए उम्मीदवारी के आड़े राहुल गांधी आ रहे थे। अगर अभी वाली स्थिति आगे भी बरकरार रह सकती है तो नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बनना मुश्किल नहीं होगा। क्योंकि राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तो पहले से रही है कि पीएम अगर गांधी परिवार से नहीं होगा, तो कांग्रेस पार्टी से अलग किसी दूसरे नेता पर सहमत हो सकती है। लोकसभा चुनाव 2024 की बारात के लिए लालू यादव ने दूल्हा बनाने की ख्वाहिश तो राहुल गांधी के लिए जताई थी लेकिन समय का पहिया फिलहाल ड्राइविंग सीट पर नीतीश कुमार को लाता दिख रहा है।