बिहार के सीएम नीतीश कुमार की राजनीतिक कुंडली में ग्रहों की दशा मजबूत बताई जाती है। क्योंकि नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से हर परिस्थिति में बिहार के सीएम हैं। बिहार के राजनीति की सबसे उंची कुर्सी उनसे चिपकी हुई। वैसे तो मौजूदा हालात में भी उनकी राजनीतिक स्थिति में कोई रुकावट नहीं आई है। लेकिन उनके तीन विश्वासपात्रों ने उनकी कुंडली के ग्रहों की दशा बिगाड़ने की ठान ली है। कहा जाता है कि इंसान का बुरा समय तब आता है जब उसकी कुंडली में मंगल, शनि या राहु की दशा बिगड़ने लगती है। नीतीश कुमार के साथ स्थिति यह है कि उनके तीन ग्रह जो उनके साथ रहे थे, अब उनके खिलाफ हो गए हैं।
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क्षेत्रीय पार्टी के ‘राष्ट्रीय चेहरों’ ने बिगाड़ दी पूरी इमेज
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू है, जो बिहार की स्टेट पॉलिटिकल पार्टी है। लेकिन हर क्षेत्रीय दल की भी एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी होती है। जदयू की भी रही है और है भी। लेकिन अलग अलग वक्त पर इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ऐसे ऐसे लोग रहे हैं, जो नीतीश कुमार के लिए मुसीबत बनते रहे हैं। इनमें पहला नाम तो शरद यादव का ही आता है जो जदयू के सबसे लंबे समय तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। लेकिन अब शरद यादव रहे नहीं, तो उनकी बात जाने देते हैं। तीन और चेहरे रहे हैं, जिन्हें नीतीश कुमार ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा बनाया। अब तीनों उनके खिलाफ एक साथ वार कर रहे हैं।
आरसीपी सिंह, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू
जदयू के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को हटाकर नीतीश कुमार खुद इस पद पर आए थे। इसके बाद उन्होंने आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया। तब माना यह जाता था कि नीतीश कुमार जो कहते और करते हैं उसमें आरसीपी सिंह का भी योगदान रहता था। लेकिन आरसीपी सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद केंद्र में मंत्री बनने के विवाद में ऐसे उलझे कि नीतीश कुमार की नजरों से उतर गए। आरसीपी ने इस्तीफा दिया। नीतीश की नजरों से उतरे आरसीपी की जुबां भी नीतीश कुमार के खिलाफ चलने लगी है। आज हालत यह है कि जिस आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद का दावेदार सबसे पहले बताया था, पूरे बिहार में वही आरसीपी सिंह यह कहते हुए घूम रहे हैं कि नीतीश कुमार के 17 साल में बिहार में कोई बड़ा काम नहीं हुआ।
प्रशांत किशोर, पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, जदयू
चुनावी रणनीतिकार से सक्रिय राजनेता बनने और जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने में प्रशांत किशोर को सिर्फ एक दिन का वक्त लगा। जदयू में आधिकारिक तौर पर शामिल होते ही प्रशांत किशोर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए। लेकिन इस चुनावी चाणक्य की जुबां एक बार ऐसे फिसली कि पूरी पार्टी में उनके खिलाफ सुगबुगाहट शुरू हुई। दरअसल, प्रशांत किशोर ने युवाओं की एक सभा में यह कह दिया कि वे सीएम-पीएम बनवाते हैं तो मुखिया-सरपंच क्यों नहीं बनवा सकते। जदयू के नेताओं ने इसे नीतीश कुमार की छवि के अनुरुप नहीं माना। बाद में उन्हें जदयू से चलता कर दिया गया। अब जन सुराज पद यात्रा में नीतीश कुमार के खिलाफ प्रशांत किशोर वो सबकुछ कह रहे हैं जो एक विरोधी कह सकता है।
उपेंद्र कुशवाहा, अध्यक्ष, संसदीय बोर्ड, जदयू
ताजा मामला उपेंद्र कुशवाहा का है जो न जदयू से निकाले गए हैं और न ही उन्होंने जदयू छोड़ा है। लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ खुलेआम जंग-ए-ऐलान करने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश समर्थकों की नींदें हराम कर दी है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि आरसीपी और प्रशांत किशोर की तरह उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार की नीतियों की बुराई नहीं कर रहे हैं। उनपर निजी हमले कर रहे हैं। बातों को प्रमाणित करने के लिए बच्चों की कसम खाने के लिए उकसा रहे हैं। आरसीपी और प्रशांत किशोर ने अब तक नीतीश कुमार को खराब प्रशासक और कुटिल राजनेता बताया है। उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार के खिलाफ पहली ही प्रेस कांफ्रेंस में झूठा, स्वार्थी, लालची सबकुछ बता दिया है।