स्वतंत्र भारत में पहली बार राम मंदिर का मुद्दा वर्ष 1949 में गरमाया था। उस साल बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई थी। इसके बाद अयोध्या के तत्कालीन डीएम के आदेश पर इस एरिया को सील कर दिया गया था। बाद में मामला कोर्ट तक पहुंचा। हालांकि, यह पहला मौका नहीं था जब अयोध्या का मामला कोर्ट तक पहुंचा था। 1853 में पहली बार अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर दंगे हुए थे। इसके बाद 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवाद का हल निकालने की कोशिश की। परिसर के विवाद को शांत करने के लिए मस्जिद के सामने एक दीवार बना दी गई। परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति की गई। हालांकि, इस मामले को लेकर पहली बार कोर्ट में मामला 1885 में दर्ज कराया गया था।
दरअसल, 1859 से 1985 के बीच मंदिर का विवाद गहराता चला गया। इस कारण पहली बार कोर्ट में केस दर्ज किया गया। हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी। कोर्ट ने उनकी यह अपील ठुकरा दी। इसके बाद विवाद गहराता चला गया। हालांकि, कोर्ट में दायर मुकदमे में सुनवाई का सिलसिला शुरू हो गया।
1934 में दूसरी बार हुए भीषण दंगे
स्वतंत्रता आंदोलन के बीच हिंदू- मुस्लिमों के बीच बढ़ती खाई ने लोगों के बीच विवाद को गहरा कर दिया। 1934 में राम मंदिर मुद्दे को लेकर अयोध्या में दूसरी बार भीषण दंगे हुए। सांप्रदायिक दंगों की आग बाबरी मस्जिद तक पहुंची। इन दंगों में मस्जिद के चारों तरफ की दीवार और गुंबदो का नुकसान पहुंचा। ब्रिटिश सरकार ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1949 में बाबरी मस्जिद में रामलला की स्थापना के साथ विवाद में एक नया अध्याय जुड़ा।
1950 में कोर्ट में पहली बार दर्ज हुआ केस
स्वतंत्र भारत में पहली बार कोर्ट में मामला वर्ष 1950 में पहुंचा। गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद कोर्ट में अपील दायर की। इस याचिका में भगवान राम की पूजा की इजाजत मांग गई। महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं की ओर से पूजा जारी रखने की याचिका दायर की। इसी दौरान पहली बार मस्जिद को ढांचा के रूप में संबोधित किया गया।
1959 में दोनों पक्षों की ओर से याचिका
मस्जिद को ढांचा के रूप में संबोधित किए जाने को राम मंदिर के आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में माना जाता है। वर्ष 1959 में राम मंदिर को लेकर एक और याचिका दायर की गई। निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए मुकदमा दायर किया। दूसरी तरफ, मुसलमानों की तरफ से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी बाबारी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया।
1984 में आया अहम पड़ाव
राम मंदिर आंदोलन में 1984 में एक अहम पड़ाव आया। रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन वर्ष 1984 में किया या। विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर बनाने के लिए एक समिति का गठन किया। उसी समय गोरखपुर के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाई। महंत अवैद्यनाथ ने अपने शिष्यों और लोगों से कहा था कि उसी पार्टी को वोट देना जो हिंदुओं के पवित्र स्थानों को मुक्त कराए। बाद में इस अभियान का नेतृत्व भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया।