Ram Mandir History : अयोध्या में राम जन्मभूमि पर रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां शुरू हैं। 22 जनवरी को मुख्य समारोह होना है। यह समारोह लंबी कानूनी लड़ाई, धार्मिक उन्माद और भारतीय संस्कृति पर चोट की एक कहानी है। कहानी की शुरुआत लगभग 500 साल पहले हुई। साल था 1528, जब मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने (विवादित जगह पर) एक मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद के निर्माण के साथ ही शुरू हुआ वो विवाद जिसका अंत क्या होगा, कुछ साल पहले तक किसी ने सोचा तक नहीं था। मस्जिद के निर्माण से लेकर अब मंदिर के निर्माण तक की कहानी (Ram Mandir History) हम आपको बता रहे हैं।
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1528 में पड़ी विवाद की नींव
राम मंदिर विवाद की अयोध्या में नींव पड़ी 1528 में। मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने विवादित जगह पर एक मस्जिद का निर्माण कराया। इसे लेकर हिंदू समुदाय का दावा रहा कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां एक प्राचीन मंदिर था। इस मस्जिद में तीन गुंबद थे और कहा गया कि मुख्य गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थान था। मुगलों के शासन में हिंदुओं की आवाज दबती रही और कोई सुनवाई नहीं हुई। लेकिन हिंदु समुदाय ने इस पर दावा कभी नहीं छोड़ा।
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1853 में पहली बार हुआ दंगा
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद में पहली बार दंगे 1853 में हुए। इसके बाद 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह की बाड़ेबंदी कर दी। ब्रिटिश हुकूमत ने इस विवाद को सुलझाने की बजाय और उलझा दिया। निर्णय हुआ कि मुसलमान ढांचे के अंदर इबादत करेंगे और हिंदू ढ़ांचे के बाहर चबूतरे पर पूजा करेंगे। ब्रिटिश शासन जब तक चला यह व्यवस्था बनी रही। लेकिन दावेदारी न हिंदू समुदाय ने छोड़ी और न ही मुसलमानों ने इससे किनारा किया।
1949 में मिली राम की मूर्तियां
देश को आजादी मिलने के बाद 1949 में विवाद उस रूप में आया, जो कुछ साल पहले तक चला। 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। इन मूर्तियों को लेकर हिंदुओं का दाव था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं। जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि रात में चुपचाप मूर्तियां रखी गईं हैं। मामला जब प्रशासन के पास पहुंचा तो तत्कालीन यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया। लेकिन सरकार के इस आदेश को तत्कालीन स्थानीय डीएम केके नायर ने नहीं माना। दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से उन्होंने सरकार के सामने इसमें असमर्थता जताई। सरकार ने भी अलग रुख अपनाया और स्थल को विवादित मानते हुए ताला लगवा दिया।
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1950 से शुरू हुई कानूनी लड़ाई
मूर्तियां मिलने और उसके बाद तालाबंदी करने के बाद 1950 में कानूनी लड़ाई शुरू हुई। उसी साल फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जियां दाखिल की गई। इसमें एक में रामलला की पूजा की इजाजत मांगी गई। तो दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। इसके बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की। इसके बाद मुस्लिम समुदाय भी सक्रिय हुआ और वर्ष 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह से मूर्तियां हटाने की मांग की।
मंदिर निर्माण के लिए 1984 में बनी कमेटी
कानूनी लड़ाई चलती रही और इसी बीच साल 1984 आ गया। विश्व हिंदू परिषद ने विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए कमेटी का गठन किया। तब तक 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। इस आदेश के बारे में केएम पांडेय ने बताया है कि जिस दिन वे अपना आदेश लिख रहे थे, उस दिन एक बंदर उनकी अदालत के बाहर बैठा रहा। वो बंदर तब तक बैठा रहा, जब तक आदेश नहीं निकला। इस बीच लोग उसे खाने के लिए फल देते रहे लेकिन उसने कुछ नहीं खाया। केएम पांडेय के मुताबिक वो बंदर शाम में उनके घर के बरामदे में भी दिखा।
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1992 में गिरा दिया गया ढांचा
दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई के बीच हिंदुओं का धैर्य 6 दिसंबर 1992 को जवाब दे गया। तब वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई। 10 साल बाद अयोध्या के कारण एक बार फिर दंगे हुए। यह दंगे गुजरात में हुए। 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद गुजरात में हुए दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। दंगों का इतिहास भी लंबा चला लेकिन साल 2010 आते आते कुछ और कानूनी फैसले आए। 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। लेकिन साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
मध्यस्थता की कोशिश हुई फेल
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट की कोशिश शुरू की। तब इस मामले में भाजपा के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए गए। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। मध्यस्थता की यह कार्रवाई पैनल को 8 सप्ताह के अंदर पूरी करनी थी। इसके बाद 1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी। अगले दिन 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा। इसके बाद 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई रोज शुरू हुई।
9 अक्टूबर 2019 को हिंदुओं के पक्ष में फैसला
मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चलती रही और 16 अक्टूबर 2019 पूरी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसे 9 नवंबर 2019 को सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने फैसला हिंदुओं के पक्ष में दिया। फैसले के अनुसार 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। जबकि मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया गया। इसके बाद 25 मार्च 2020 को तकरीबन 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट हुए।
2020 में हुआ राम मंदिर का भूमिपूजन
5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया। तब अयोध्या पहुंचे पीएम मोदी ने हनुमानगढ़ी में सबसे पहले दर्शन किया। अब 22 जनवरी 2024 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्रीराम के बाल रूप रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह आयोजित किया जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे।