डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक, प्रखर वक्ता, स्पष्ट वादी तथा लोकतंत्र के सजग प्रहरी थे, जिनके चिंतन के केंद्र में सता नहीं बल्कि जनता थी। निर्भीक विचार व्यक्त करने के लिए जरा भी किंतु -परंतु के उलझन में नहीं पड़ते थे। हजारीबाग केंद्रीय जेल में 10 अगस्त 1965 से 20 अगस्त 1965 तक डॉक्टर साहब बंद रहे थे। इसके पहले भी इस इलाके में उनका कई बार दौरा हुआ करता था।
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रामगढ़ घराने के राजा कामाख्या नारायण सिंह की एक जमाने में राजनीति के क्षेत्र में तूती बोलती थी । 1957 के बिहार विधानसभा के चुनाव में राजा साहब की पार्टी को काफी सीटें हासिल हुई थी। उसी समय पटना में कामाख्या नारायण सिंह की मुलाकात डॉ. लोहिया से हुई। बातचीत के दरमियान राजा साहब ने कहा था कि आप हजारीबाग तो आते हैं लेकिन मुलाकात नहीं होती। इसके जवाब में लोहिया ने कहा था कि सिर्फ अधिक सीटें जीतकर विधानसभा में आने से स्थाई राजनीति की पहचान नहीं मिलती। आप जनता के लिए आंदोलन करें, जेल जाएं तब मैं वहां अवश्य आपसे मिलने आऊंगा।
किसानों की समस्या को लेकर राजा साहब ने हजारीबाग में आंदोलन किया था तथा उनकी गिरफ्तारी हुई और वे जेल भेजे गए। उस समय विशेष रुप से लोहिया हजारीबाग आए तथा जेल जाकर कामाख्या नारायण सिंह जी से मुलाकात की थी। यह एक ऐतिहासिक घटना है तथा डॉ राम मनोहर लोहिया की वचनबद्धता का सटीक उदाहरण है। हजारीबाग से जुड़ी उनकी कई स्मृतियां है जो इधर-उधर बिखरी पड़ी है, जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है। उनकी एक एक शब्द वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में शत प्रतिशत खरे उतर रहे हैं जब उन्होंने कहा था- जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती।