अयोध्या में 22 जनवरी को प्रभु रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो जाएंगे। लेकिन, 496 साल पहले क्या राम मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया? यह सवाल आज भी कई लोगों के दिमाग में घूम रहा है। इस मामले में वामपंथी विचारधारा को मानने वालों का दावा है कि अगर मुगल शासकों ने मंदिर तोड़वाई तो भक्तिकाल के समकालीन महान लेखक तुलसीदास ने अपने ग्रंथ रामचरितमानस में इसका उल्लेख क्यों नहीं किया? सवाल वाजिब भी है। रामचरितमानस को तुलसी की महान रचना माना जाता है। लेकिन, इस ग्रंथ में तुलसी ने रामचरित का उल्लेख किया है। तुलसी पर यह आरोप लगाना गलत है कि उन्होंने मुगल साम्राज्य के अत्याचार और मंदिर तोड़े जाने पर कुछ नहीं लिखा। तुलसी ने अपनी रचना तुलसी दोहा शतक में उस समय की स्थिति का जिक्र किया है। तुलसी दोहा शतक के इन श्लोकों को इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान पेश किया गया था। इन श्लोकों के आधार पर आप भी अंदाजा लगाइए कि क्या तुलसी ने मुगल शासक की अयोध्या में की गई बर्बरता का जिक्र किया था या नहीं?
तुलसी दोहा शतक का एक श्लोक है-
मंत्र उपनिषद ब्राह्मनहुं, बहु पुरान इतिहास।
जवन जराए रोष भरि, करि तुलसी परिहास॥
तुलसीदास इस दोहे में कहते हैं कि क्रोध से भरकर यवनों ने बहुत सारे मंत्रसंहिता, उपनिषद, वेद के अंग माने जाने वाले ब्राह्मण ग्रंथों एवं पुराण और इतिहास संबंधी ग्रंथों का परिहास करते हुए उन्हें जला दिया।
सिखा सूत्र से हीन करि, बल ते हिन्दू लोग।
भमरि भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुजोग॥
तुलसी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) काट दी गई। यज्ञोपवीत यानी जनेऊ तोड़ दिया गया। उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया। यह कैसा कुयोग है।
बाबर बर्बर आइके, कर लीन्हे करवाल।
हने पचारि पचारि जन, जन तुलसी काल कराल॥
तुलसीदास इस दोहे में कहते हैं कि हांथ में तलवार लिए बर्बर बाबर आया। लोगों को ललकार- ललकार कर हत्या की। लोग काल के गाल में समा गए। यह समय अत्यंत भीषण था।
संबत सर वसु बान नभ, ग्रीष्म ऋतु अनुमानि।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन, अनरथ किय अनखानि॥
तुलसीदास के इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक जिक्र है। ये अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे। सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम संवत 1585 और इसमें से 57 वर्ष घटा देने से वर्ष 1528 आता है। तुलसी लिखते कि विक्रम संवत 1585 (वर्ष 1528) की गर्मी के दिनों में जड़ यवनों ने अवध में वर्णन न किए जाने योग्य अनर्थ किया।
राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी कीन्ही हाय॥
तुलसी लिखते हैं कि राम जन्मभूमि का मंदिर नष्ट करके उन लोगों ने एक मस्जिद बनाई। बड़ी ही बेरहमी से इस दौरान हिंदुओं की हत्या की गई। यह सुनकर- देखकर तुलसी के मुख से हाय निकल रहा था। वे शोकाकुल थे।
दल्यो मीरबाकी अवध, मन्दिर राम समाज।
तुलसी रोवत हृदय हति, त्राहि- त्राहि रघुराज॥
तुलसीदास दोहे की रचना करते हुए रघुपति राजा राम को याद करते हुए रोते हैं। वे लिखते हैं कि अधर्मी मीरबाकी ने मंदिर को नष्ट किया। राम समाज यानी राम दरबार की मूर्तियों को तोड़ दिया। भगवान राम से जन्मस्थान की रक्षा की याचना करते हुए तुलसी भारी मन से रो रहे हैं।
राम जनम मंदिर जहां, तसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहं, मीरबकी खल नीच॥
तुलसीदास लिखते हैं कि राम मंदिर जहां स्थित था, उसी बीच अवध में मस्जिद का निर्माण किया गया। नीच मीरबाकी ने राममंदिर पर मस्जिद का निर्माण कराया।
रामायन घरि घट जहां, श्रुति पुरान उपखान।
तुलसी जवन अजान तंह, करत कुरान अजान॥
तुलसीदास लिखते है कि जहां रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से संबंधित प्रवचन होते थे। घंटे और घड़ियाल बजते थे। वहां अज्ञानी यवनों की कुरआन के पाठ और अजान होने लगे। तुलसीदास ने अपनी इस रचना में श्रीराम जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया है। ऐसे में तुलसीदास पर समकालीन इतिहास पर कुछ न कहने का आरोप पूरी तरह से निराधार साबित होता है।