बिहार की राजनीति में माहौल शायराना भी और कातिलाना भी। एक ओर शह-मात का खेल चल रहा है। तो दूसरी ओर दलों के बाहर दिल मिलने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। इंतजार बड़े ‘मुकाबले’ का है, पर उसकी तैयारी में हर ‘सिपाही’, ‘सेनापति’ बनने को बेकरार है। लड़ाई ‘दिल्ली की गद्दी’ की है, जिस भाजपा सवार है। लेकिन वहां पहुंचने की चाहत जदयू के नीतीश कुमार की भी है। हालांकि भाजपा से निपटने से पहले नीतीश कुमार को अपने उन ‘सिपाहियों’ से निबटना होगा, जो भाजपा में शामिल तो नहीं हुए हैं लेकिन बोली भाजपा की ही बोल रहे हैं।
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उपेंद्र-RCP की बोली में भाजपाई तेवर
नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे RCP सिंह और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की अब नीतीश कुमार से नहीं बनती। आरसीपी ने किनारा कर लिया है, उपेंद्र कुशवाहा किनारे लगने के बेहद करीब हैं। वैसे तो दोनों ही भाजपा में अभी नहीं हैं। लेकिन दोनों की बोली में भाजपाई तेवर विराजमान हो चुका है। जो आरोप भाजपा के नेता लगाते हैं, वही आरोप ये दोनों, भाजपा नेताओं से ज्यादा बेहतर तरीके से लगाते हैं। इसके बावजूद दोनों भाजपा में शामिल क्यों नहीं हो रहे, ये बड़ा सवाल है।
‘अभी तकल्लुफ है गुफ्तगू में’
RCP सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की भाजपा से करीबी तो सामने आ चुकी है लेकिन ये दोनों भाजपा में शामिल क्यों नहीं हो रहे हैं, इसका जवाब एक गजल में है। एक मशहूर और ट्रेंडिंग गजल के बोल हैं “अभी तकल्लुफ है गुफ्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है…”। मतलब, ये कि उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह की भाजपा से मोहब्बत अभी भाजपा में शामिल हो जाने की हद तक नहीं पहुंची। ये दोनों नेता दूसरी पार्टियों में होते हुए तो भाजपा के करीब तो रहे हैं लेकिन इस बार पहले वाला रिश्ता चलना मुश्किल है।
गठबंधन नहीं करना चाहती भाजपा
राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा बिहार में लोजपा के गुटों के अलावा अभी किसी भी दल से गठबंधन के पक्ष में नहीं है। नीतीश कुमार को इतने साल बतौर CM सपोर्ट करने के बाद भी, वे भाजपा के नहीं हुए। ऐसे में अब भाजपा बिहार में दूसरा ‘नीतीश कुमार’ खड़ा नहीं करना चाहती। इसलिए उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह की भाजपा से दोस्ती, गठबंधन के साथी के तौर पर नहीं, दल में शामिल होकर ही संभव है। यही कारण है कि ये दोनों नेता भी परिस्थितियां तौल रहे हैं और भाजपा भी इंतजार कर इनकी ‘मोहब्बत’ को और मौका दे रही है। ताकि दिक्कत आगे न हो।