2 अक्टूबर 2022 से अब तक दो साल में बिहार के 17 जिलों में 5,500 गांवों में लोगों से मिलने के बाद अब प्रशांत किशोर एक पार्टी का गठन कर रहे हैं। नाम जनसुराज पहले से तय ही है। पार्टी की आधिकारिक घोषणा के साथ उसका स्वरूप भी सबके सामने बुधवार, 2 अक्टूबर 2024 को आ जाएगा। अभी तक बिहार के राजनीतिक दल भगवा, हरा और लाल रंगों वाले झंडे इस्तेमाल करते रहे हैं, प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी के लिए पीला रंग चुनाव है। लेकिन रंगों में अलग दिखने की कोशिश में सफल प्रशांत किशोर की पहचान अभी तक यहीं पर सीमित है कि आखिर वे किसका वोट काटेंगे, किसको डैमेज करेंगे। क्योंकि उन्हें वोट तो उन्हीं वोटर्स से लेना है, जो पहले से किसी न किसी दल को वोट करते आए हैं।
प्रशांत किशोर की चोट से सभी सशंकित?
मौजूदा समय में किसी भी राजनीतिक दल के नेता या कार्यकर्ता से बात करें तो वे प्रशांत किशोर की चुनौती को गंभीर नहीं मान रहे। इसके पीछे ज्यादातर लोगों का तर्क है कि प्रशांत किशोर उस व्यवस्था को तोड़ने की बात कर रहे हैं, जिसके बूते कई दशकों से बिहार की सत्ता चल रही है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि प्रशांत किशोर की राजनीति में एंट्री से सभी विरोधी दल सशंकित है। इसका कारण यह है कि प्रशांत किशोर उसी तकनीक के महारथी हैं, जिसे पिछले 10 वर्षों में राजनीतिक लहर बनाने का खिताब दिया गया है।
प्रशांत किशोर ने 2014 में मोदी लहर को उठाने में अपनी भूमिका निभाई। उसके बाद वे मोदी के खिलाफ बिहार में नीतीश लहर ले आए। इसके अलावा स्टालिन, जगन मोहन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के लिए बनाई उनकी राजनीतिक हवा जीत दिलाने में कामयाब रही। प्रशांत किशोर चुनाव में प्रमोशन और ब्रांडिंग के साथ लहर बनाने की कला जानते हैं और अन्य राजनीतिक दलों के सशंकित होने का कारण यही है।
लेकिन प्रशांत किशोर अपने और अपने संगठन के लिए लहर कैसे बना पाएंगे, इसके लिए आने वाले बिहार चुनाव तक इंतजार करना होगा। क्योंकि बिहार में 1 करोड़ सदस्य बनाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर इसमें से कितनों का वोट ले पाएंगे, यह चुनाव में ही तय होगा। वैसे भी जब राजनीतिक दल बन गए हैं, तो उनकी सफलता और असफलता सबकुछ चुनाव में उनके प्रदर्शन, विधायक-सांसदों की संख्या से ही तय होना है।
प्रशांत किशोर को लेकर अन्य दलों में शंका का आधार
भाजपा : प्रशांत किशोर को अगर राजनीतिक रणनीतिकार का तमगा मिला तो वो भाजपा की 2014 में जीत के बाद मिला। मोदी के साथ दिखने वाले प्रशांत किशोर भले ही भाजपा के साथ चुनाव के बाद टिके नहीं रह पाए लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण प्रशांत के लिए भाजपा स्वाभाविक निशाना है।
राजद : प्रशांत किशोर कभी राजद के साथ सीधे तौर पर जुड़े नहीं रहे। लेकिन 2015 में जदयू के लिए कैम्पेनिंग का काम संभाल रहे प्रशांत किशोर और लालू यादव के बीच नजदीकियां इसलिए आईं क्योंकि राजद और जदयू तब साथ मिलकर चुनाव में लड़े। अब प्रशांत अपना दल बना रहे हैं तो उनके निशाने पर अधिकतर भाषणों में तेजस्वी यादव रहते हैं। प्रशांत मुसलमानों के प्रतिनिधित्व से लेकर तेजस्वी की समझ तक पर खुल कर सवाल उठाते हैं। बिहार में मुसलमान वोटर्स अगर खिसकते हैं, तो राजद का आधार बहुमत पाने से और दूर जाएगा।
जदयू : नीतीश कुमार की पार्टी जदयू प्रशांत किशोर के लिए सबसे आसान टारगेट है। प्रशांत को बिहार से चुनावी राजनीति का आगाज करना है। जबकि 19 सालों से नीतीश कुमार सीएम बने हुए हैं। ऐसे में वे सीधे निशाने पर हैं। इसके अलावा प्रशांत ने नीतीश कुमार और जदयू के लिए प्रोफेशनली भी काम किया है और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर भी काम किया है। ऐसे में प्रशांत किशोर का हर हमला नीतीश कुमार और जदयू को ज्यादा चुभेगा।