तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन का सनातन धर्म को खत्म करने का आह्वान पूरे देश में नई बहस को जन्म दे गया है। उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से की है। उनका कहना है कि जिस तरह इन बीमारियों का विरोध नहीं इनका खात्मा होना चाहिए, उसी तरह सनातन का विरोध नहीं इसे समाप्त किया जाना चाहिए। सनातन को लेकर उदयनिधि के ये बोल बिना सोचे समझे नहीं बोले गए हैं क्योंकि बोलने के बाद वे इस पर कायम होने की बात भी लगातार दुहरा रहे हैं। उदयनिधि यह भी कह रहे हैं कि द्रविड़ परंपरा किसी के साथ असमानता नहीं करता, जबकि सनातन करता है। अब सवाल उठता है कि जिस द्रविड़ और सनातन का विवाद आखिर है क्या?
भेदभाव और छूआछूत का विरोध
दरअसल, सनातन और द्रविड़ के बीच विवाद का कारण भेदभाव और छूआछूत ही रहा है। द्रविड़ भेदभाव और छूआछूत का विरोध करने की परंपरा को मानते हैं। इसको लेकर आंदोलन भी हुआ है। वैसे इस छूआछूत और भेदभाव केंद्र और विरोध दोनों दक्षिण भारत ही रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1924 में केरल में त्रावणकोर के राजा के मंदिर के रास्ते पर भी दलितों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया। जिसने इसका विरोध किया, उसे गिरफ्तार कर लिया गया। असंगठित विरोध जब दम तोड़ने ही वाला होता है कि इस आंदोलन में एंट्री होती है एक नेता की।
पेरियार ने दिया आंदोलन को धार
ई. वी. रामास्वामी यानी पेरियार ने दलितों के सम्मान के लिए आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन उस त्रावणकोर राज के विरोध में था, जो कभी पेरियार के मित्र थे। पेरियार ने जो द्रविड़ आंदोलन शुरू किया, उसके कारण उन्हें महीनों तक जेल में रहना पड़ा। पेरियार तब कांग्रेस में थे। इस बीच एक ऐसी घटना हुई कि आंदोलन को सपोर्ट करने के लिए पेरियार ने कांग्रेस छोड़ दी। दरअसल, चेरनमादेवी शहर में कांग्रेस के अनुदान पर चल रहे सुब्रह्मण्यम अय्यर के स्कूल में ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण छात्रों के साथ खाना परोसते समय अलग व्यवहार किया जाता है। पेरियार ने ब्राह्मण अय्यर से सभी छात्रों से एक समान व्यवहार करने का आग्रह किया। लेकिन न तो वो अय्यर ही उनकी बात माने और न ही कांग्रेस ने अनुदान रोका। इसके बाद पेरियार ने कांग्रेस छोड़, आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया।
द्रविड़ मूवमेंट का तमिलनाडु में व्यापक असर
वैसे तो द्रविड़ मूवमेंट का केंद्र केरल था, लेकिन इसका व्यापक असर तमिलनाडु में भी पड़ा। वहां के पिछले दो मुख्यमंत्रियों ने द्रविड़ आंदोलन से अपने जुड़ाव के कारण ही ब्राह्मणवादी परंपराओं को नहीं माना। अंतिम संस्कार तक की विधि अलग रही। 5 दिसंबर 2016 को तमिलनाडु की सीएम रहीं जे. जयललिता का निधन हुआ। लेकिन अंत्येष्टि की प्रक्रिया ने कई सवालों को जन्म दिया। दरअसल, जयललिता की जब अंत्येष्टि हुई तो उन्हें दफनाया गया और फिर उनकी समाधि बना दी गई। सवाल उठा कि हिंदू सीएम को आखिर दफनाया क्यों जा रहा है? इसी तरह 2018 में एम. करुणानिधि के निधन के बाद उनका भी दाह संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उन्हें भी दफनाया गया था। माना जाता है कि दोनों द्रविड़ मूवमेंट से जुड़े रहे हैं, इसी कारण ब्राह्मणवाद के इस विरोध के प्रतीक के तौर पर द्रविड़ आंदोलन से जुड़े लोग दाह संस्कार के बजाय दफनाने की रीति अपनाते हैं।