[TeamInsider]: भारत में आजादी के बाद अबतक कई घोटाले हुए। इतिहास खंगाला जाए तो घोटालों (scamकी बहुत लम्बी सूची है। इसका इतिहास भी पुराना है। कुछ घोटालें उजागर हो जाते हैं और कुछ दबे रह जाते हैं। वैसे भी घोटाला भ्रष्टाचार से नेताओं का चोली दामन का साथ रहता है। हर स्कैम के पीछे दल या नेताओं का नाम जरूर जुड़ा रहता है। अगर घोटालों की लिस्ट तैयार की जाए तो हमारे जेहन में वैसा ही घोटाला नजर आयेगा जो चर्चित रहते हैं और जिसे मीडिया द्वारा याद दिलाया जाता है। अगर घोटालों का इतिहास खंगाले तो ऐसे कई घोटाले हैं जो लोगों को याद तक नहीं। कुछ घोटालों की फाइलें बन्द कर दी गईं तो कुछ घोटालों की सुनवाई सालों से अभी तक चल रही है। आजादी के बाद हुए ऐसे घोटाले (Scam) जिसे लोग समय के साथ भूल गए।
जीप खरीदी (1948)
देश आजाद होने के एक साल बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से सौदा किया था. यह सौदा दो हजार जीपों का था। सौदा लाखों करोड़ों रुपये का था। घोटाले में ब्रिटेन में पदस्थापित तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई थी। यह वही कृष्ण मेनन हैं जो 1957 से 1962 तक रक्षा मंत्री रहे थें। यह राजीव गांधी के बहुत करीब माने जाते थें। बाद में केस बंद कर दिया गया। इसमें किसी भी प्रकार की कोई वसूली नहीं हो पाई थी। उस वक्त भारत पाकिस्तान तनाव चरम पर था इसलिए इन जीपों की जरूरत भारत को तुरंत थी लेकिन इनकी पहली खेप हीं जिसमें जीपों की संख्या 150 शामिल थी, वह भी सीजफायर होने के बाद भारत पहुंची। जीप की क्वालिटी भी बहुत बेकार थी जो चल भी नहीं सकती थी।
साइकिल आयात (1951)
एस.ए. वेंकटरमन जो उस वक्त के तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी थें उन पर आरोप लगा था कि एक कंपनी को गलत तरीके से साइकिल आयात कोटा दिया था जिसके बदले में इन्होनें रिश्वत ली थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इसमें भी कोई वसूली नहीं हुई।
मुंध्रा मैस घोटाला
साल 1958 में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के करोड़ों रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ था। हरिदास मुंध्रा द्वारा छह कंपनियां स्थापित कर के इस घोटाले को अंजाम दिया गया था। इस कांड में उस वक्त के तत्कालीन फाइनेंस मंत्री रहे कृष्णामचारी का नाम सामने आया था। इसके कारण कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। इस घोटाले में भी किसी प्रकार की कोई वसूली नही हो पाई थी। इस घोटाले में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बड़ी किरकिरी हुई थी क्योंकि इसे उजागर करने वाला कोई और नहीं उनके दामाद फीरोज़ गांधी थे।
तेजा ऋण घोटाला
साल 1960 में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कम्पनी खड़ी की. इस शिपिंग कंपनी के नाम पर सरकार से 22 करोड़ रुपये का लोन लिया गया था। लेकिन बाद में सारे रूपए को यूरोप भेज दिए। इन्हें यूरोप से गिरफ्तार किया गया और 6 साल की सजा दी गई। इसमें भी किसी प्रकार की कोई वसूली नहीं हो सकी।
मारुति घोटाला
साल 1974 का वक्त था जेपी आंदोलन चरम पर था। उस वक्त मारुति कंपनी बनने से पहले एक घोटाला हुआ था जिसे मारूति घोटाला भी कहा गया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम सामने आया था। उन पर आरोप था कि पसेंजर कार का लाइसेंस बनवाने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी और इस घोटाले की आंच इंदिरा गांधी तक पहुंच गई थी।
ऑयल डील घोटाला
साल 1976 में तेल के गिरते दामों को देखते हुए इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल की डील की थी। इसमें भारत सरकार को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा था। इंदिरा गांधी और संजय गांधी का हाथ है इस घोटाला में ऐसा माना गया था।
अब्दुल रहमान अन्तुले घोटाला
साल 1981 दौर था उस वक्त के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एआर अंतुले थें उन पर यह आरोप लगा था कि वह जनकल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दिए जा रहे थें। इसे सीमेंट घोटाला के नाम से भी जाना गया।
एचडीडब्लू दलाली (1987)
जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाली कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया था। क्योंकि उसने 20 करोड़ रुपये बैतोर कमिशन के रूप में लिए थें। लेकिन 2005 में केस बंद कर दिया गया और फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में चला गया।
इंडियन बैंक घोटाला
साल 1992 में छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने इंडियन बैंक से करीब-करीब 13000 करोड़ रुपये कर्ज लिए थे। ये धनराशि कॉर्पोरेटर और एक्सपोर्टर्स ने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त इंडियन बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थें।
चीनी घोटाला
कल्पनाथ राय साल 1994 में भारत सरकार के खाद्य और आपूर्ति मंत्री थें। उस वक्त बाजार भाव से भी महंगे मूल्य पर चीनी आयात करने का फैसला कल्पनाथ राय ने किया गया था। इस घोटाले में सरकार को 650 करोड़ रूपए का चपत लगा था। इस मामले में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।