जून से लेकर अगस्त विपक्षी दलों के गठबंधन के गठन में जो तेजी दिख रही थी, वो अब नहीं दिख रही है। पटना में 23 जून को हुई पहली बैठक में साथ चुनाव लड़ने का संकल्प 15 दलों ने लिया। 18 जुलाई को बेंगलुरु की बैठक में गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. रखा गया। 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में हुई बैठक में समितियां बनीं। उसके बाद को-ऑर्डिनेशन कमेटी की एक बैठक भी हुई। मीडिया कमेटी ने 14 न्यूज एंकर्स के शो में गठबंधन के दलों को प्रवक्ता भेजने पर रोक लगा दी। लेकिन उसके बाद सबकुछ ठंडा हो गया। भोपाल में होने वाली साझा रैली रद्द हो गई। आगे बैठक कब होगी, यह तय नहीं हो रहा है। गठबंधन की नीति आगे क्या होगी, इस पर भी कोई बात नहीं हो रही।
किसका इंतजार कर रहे गठबंधन के नेता?
भाजपा और एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ने का संकल्प तो गठबंधन के दलों ने ले लिया, लेकिन सीटों का बंटवारा नहीं हुआ। बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में तो परेशानी नहीं है क्योंकि यहां पहले से मुख्य दल गठबंधन में पहले से चुनाव लड़ते आए हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात में सीटों का बंटवारा बड़ा मुद्दा है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और लेफ्ट के साथ बात अभी तक बनी नहीं है। पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और कांग्रेस विरोधी दल। जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात में फैलने को आम आदमी पार्टी की बेकरारी कांग्रेस को मुश्किल में डाल रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि गठबंधन बन गया, तो बातचीत कर सीटों का बंटवारा क्यों नहीं हो रहा?
कांग्रेस ने धीमी की अपनी चाल?
विपक्षी दलों के इस गठबंधन निर्माण का पूरा श्रेय नीतीश कुमार को जाता है। इसके लिए शुरुआती प्रयास नीतीश कुमार ने ही किए। कांग्रेस की बहुत दिलचस्पी इस गठबंधन के शुरुआत के दिनों में नहीं थी। लेकिन पटना की बैठक के बाद अचानक कांग्रेस ने गियर बदला और उसकी गठबंधन में दिलचस्पी बढ़ गई। मुंबई की बैठक में तो जैसे कांग्रेस ही सबकुछ मैनेज करने लगी। लेकिन अब एक बार फिर कांग्रेस ने चाल धीमी कर दी है, ऐसी कयासबाजी चल रही है। दरअसल, कांग्रेस अभी पांच राज्यों में चुनावी मझधार में फंसी हुई है। इन पांच में से सिर्फ दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। जबकि कांग्रेस चाहती है कि विधानसभा चुनाव की जीत हो ताकि गठबंधन में उसका रुतबा भी बढ़े।
K-G-B की परफॉर्मेंस का सहारा
चुनावी राज्यों को छोड़ दें तो कांग्रेस के पास सिर्फ कर्नाटक ही बड़ा राज्य है, जहां उसकी सरकार है। लेकिन अभी जिन पांच राज्यों में चुनावी प्रक्रिया चल रही है, उसमें मध्य प्रदेश और राजस्थान बड़े राज्य हैं। यहां राजस्थान में कांग्रेस को सरकार बचानी है तो मध्य प्रदेश में सरकार गिरानी है। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की सरकार है। तेलंगाना और मिजोरम में कांग्रेस सत्ता तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। अगर K-G-B यानि मध्यप्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की परफॉर्मेंस ठीक रहती है और इन राज्यों में कांग्रेस सरकार बना लेती है तो कांग्रेस की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। इससे गठबंधन में सीट शेयरिंग में कांग्रेस को फायदा हो सकता है। इसलिए संभावना यह है कि सीट शेयरिंग पर अंतिम फैसला 3 दिसंबर को 5 राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद ही होगा।