मुंबई में 28 दलों के पांच दर्जन से अधिक नेताओं के जमावड़े का मकसद उस फार्मूले को तय करना है, जिससे केंद्र में मोदी सरकार हैट्रिक न लगा सके। आपसी सहमति को उस स्तर पर ले जाना इन दलों का मकसद है, जिसमें देश की हर एक सीट पर भाजपा व एनडीए के खिलाफ विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार खड़ा हो। लेकिन यह तभी हो सकता है, जब अलग अलग राज्यों के क्षेत्रीय दलों का सामंजस्य राष्ट्रीय दल से बेहतर बन जाए। जब तक इस स्तर का समन्वय नहीं होगा, सीट शेयरिंग फार्मूला तय होना मुश्किल है। इस बीच मीडिया रिपोर्ट्स में विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A. के बारे में यह कहा जा रहा है कि भले ही सीट शेयरिंग का फार्मूला अभी जारी नहीं किया जाए, लेकिन अंदरखाने में यह तय हो जाएगा कि सीट शेयरिंग का आधार 2019 का लोकसभा चुनाव नतीजा बनेगा। अगर ऐसा हुआ तो कई दलों को फायदा होगा, तो कईयों को नुकसान। क्योंकि भले ही विपक्ष में रहते हुए इन दलों ने 2019 के चुनाव में सीटें कम जीतीं हों, लेकिन चुनाव लड़े खूब हैं।
जीतने और दूसरे स्थान पर रहने वाली सीटें मिलेंगी
अब सवाल उठता है कि 2019 के चुनाव नतीजों को भी आधार मानें तो सीटों का बंटवारा कैसे होगा? इसका जवाब इसमें है कि जिन सीटों पर 2019 के जिस दल ने जीत दर्ज की थी, उन सीटों पर 2024 में भी उसी पार्टी के उम्मीदवार I.N.D.I.A. के उम्मीदवार होंगे। साथ ही जिन सीटों पर I.N.D.I.A. में शामिल दलों के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे, वो सीट भी उसी दल को लड़ने के लिए दी जाएगी, जो 2019 में लड़ी थी। राजनीतिक गलियारों में यह फॉर्मूला खास माना जा रहा है। हालांकि इस पर भी सहमति में कई पेंच हैं। क्योंकि अगर यह फार्मूला लागू किया गया तो कई दलों के खाते से सीटें कटेंगी।
सबसे ज्यादा ‘त्याग’ कांग्रेस को करना होगा
2019 के चुनाव नतीजों के आधार वाला फॉर्मूला चलता है तो सबसे अधिक सीटों का त्याग कांग्रेस को ही करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि 2019 में कांग्रेस ने लोकसभा की 543 में से 422 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। यह अलग बात है कि उनके 52 उम्मीदवार ही जीते। लेकिन जीतने वाले और दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवारों की संख्या मिलाकर 2024 में कांग्रेस को 261 सीटें लड़ने को मिल सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन 370 सीटों पर कांग्रेस हारी थी, उसमें से 209 पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी। ऐसे में जीतने वाली 52 और दूसरे नंबर वाली 209 सीटों को मिलाकर कांग्रेस के खाते में 261 सीटें 2024 के चुनाव के लिए आ सकती हैं। कांग्रेस इस नंबर पर राजी इसलिए भी हो सकती है क्योंकि 261 का आंकड़ा ऐसा है, जिससे I.N.D.I.A. के पक्ष में हवा रहने की स्थिति में बहुत कुछ कांग्रेस के हाथ ही रहने की उम्मीद रहेगी।
राजद-जदयू को भी नुकसान नहीं
वहीं जिस बिहार से विपक्षी एकता की मुहिम में हवा भरी गई है, वहां के क्षेत्रीय दलों को इस सीट शेयरिंग में खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। 2019 के चुनाव में जदयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 16 सीटें जदयू ने जीती थी और 1 सीट पर जदयू दूसरे नंबर पर रही थी। इस लिहाज से 2024 के सीट शेयरिंग में जदयू को 17 सीटें मिल सकती हैं। साथ ही राजद की बात करें तो 19 सीटों में से 18 सीटों पर राजद के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। राजद कोई सीट जीत नहीं सका था। ऐसे में 18 सीटें 2024 के चुनाव के लिए राजद के खाते में आ सकती हैं।
टीएमसी की भी कटेंगी सीटें
वहीं पश्चिम बंगाल की सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस को भी इस फॉर्मूले में थोड़ा नुकसान हो सकता है। क्योंकि 2019 में टीएमसी ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब के नतीजों में 22 सीटों पर टीएमसी को जीत भी मिली थी। साथ ही टीएमसी 19 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। ऐसे में 2024 में टीएमसी की संभावित सीटों की संख्या 41 हो सकती हैं, जो 2019 के मुकाबले दो-तिहाई होगी।
यूपी में फंसेगा पेंच
2019 के नतीजों को आधार बनाकर सीटें बांटने में सबसे बड़ा पेंच उत्तरप्रदेश में फंसेगा। क्योंकि वहां के 2019 के नतीजों का हिसाब देखें तो I.N.D.I.A. में शामिल समाजवादी पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि 31 सीटों पर सपा दूसरे स्थान पर रही थी। ऐसे में सपा की संभावित सीटों की संख्या 36 होगी। जबकि एक सीट की जीत और तीन सीटों पर दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस के खाते में 4, और 3 सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे आरएलडी को 3 सीटें मिल सकती हैं। लेकिन बसपा की जीती 10 और दूसरे नंबर पर रही 27 सीटों के बंटवारे पर I.N.D.I.A. के दलों के बीच पेंच इसलिए फंसेगा क्योंकि बसपा I.N.D.I.A. का हिस्सा नहीं है।