राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी अपने एक बयान से लगातार सुर्खियों में हैं। उनकी पार्टी और सहयोगी दल उनके साथ-समर्थन में दिखने लगे और लंबे वक्त के बाद उनके बारे में बात करने लगे। तो दूसरी ओर भाजपा और एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों ने सिद्दीकी के बयान के बाद से अचानक उनपर हमलों की बौछार कर दी। सिद्दीकी ने कहा था कि देश में ऐसा माहौल है ही नहीं कि बच्चे झेल पाएंगे। यानि उन्हें भारत में अपने बच्चों का भविष्य नहीं दिख रहा था। तो 24 घंटों के अंदर ही सिद्दीकी ने ये कह दिया कि 10 बार जन्म लेना होगा तो भी भारत में ही पैदा होना चाहूंगा। आमतौर पर लोग 7 जन्मों की बात करते हैं लेकिन सिद्दीकी ने उसमें तीन अतिरिक्त जन्म जोड़ दिए। बयान देकर पलट जाने को अब पॉलिटिकल स्टंट की तरह देखा जा रहा है।
पॉलिटिकल स्टंट होने की चर्चा
दरअसल, अब्दुल बारी सिद्दीकी के बयान से पलटने के बाद इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि क्या सिद्दीकी वाकई भारत में रहने से डर रहे थे या उन्हें अपनी पॉलिटिकल जमीन खिसकती दिख रही थी? दरअसल, सिद्दीकी मानें या न मानें, देश की राजनीति में उनका कोई स्थान नहीं है और बिहार की राजनीति में भी वे किनारे लग गए हैं या यह भी कह सकते हैं कि उन्हें एक तरह किनारे लगा दिया गया है। सिद्दीकी चुनावी राजनीति वाले नेता रहे हैं लेकिन पिछले कुछ चुनावों में उनकी यह खासियत खत्म होती दिख रही है। वे लगातार चुनाव हार रहे हैं। पार्टी भी उन्हें उतनी वैल्यू नहीं दे रही, जितना वो या उनके समर्थक चाहते हैं।
कभी RJD के टॉप लीडर थे सिद्दीकी
अब्दुल बारी सिद्दीकी कभी राजद के कद्दावर नेता थे। 2010 के विधानसभा चुनाव में जब राजद सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गया था, Siddiqui तब भी अलीनगर से विधानसभा चुनाव में जीते थे। राबड़ी देवी चुनाव हार गई थी। इसलिए राजद ने विधानसभा में सिद्दीकी को नेता प्रतिपक्ष का स्थान दे दिया। 2015 में भी Siddiqui चुनाव जीते। महागठबंधन की सरकार में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बाद वित्त मंत्रालय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन अब सिद्दीकी कहीं नहीं हैं। नए मंत्रिमंडल में भी नहीं हैं क्योंकि 2020 में वे केवटी से चुनाव हार गए थे।
2015 के बाद सिद्दीकी ने नहीं जीता कोई चुनाव
Abdul Bari Siddiqui ऐसे नेता रहे हैं जो विधानसभा के साथ लोकसभा में भी किस्मत आजमाते रहे हैं। भले ही उन्हें सफलता नहीं मिली लेकिन पिछले तीन लोकसभा चुनावों में उन्होंने राजद के टिकट पर किस्मत आजमाई है। 2009 और 2014 में मधुबनी से लोकसभा चुनाव लड़कर Siddiqui हारे। जबकि 2019 में दरभंगा से लोकसभा चुनाव हारे। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी केवटी से सिद्दीकी को हार मिली। 2015 का विधानसभा चुनाव आखिरी चुनाव था, जिसमें Siddiqui जीते थे। उसके बाद से लगातार हार रहे हैं।
पार्टी में भी पूछ खत्म!
चुनावी राजनीति में सबसे बुरे दौर से गुजर रहे सिद्दीकी पार्टी के संगठन में भी अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाए नहीं रख सके हैं। राजद में तेजस्वी युग की शुरुआत के वक्त भी जगह बनाने में सफल रहे Siddiqui अब टीम तेजस्वी का हिस्सा नहीं हैं। पिछले दिनों उन्हें पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी। लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव ने जगदानंद सिंह के विरोधी तेवर के बाद भी उन्हें ही एक टर्म दे दिया। इससे Siddiqui को यह भी अहसास है कि पार्टी उन्हें उस स्तर पर अब नहीं चाहती, जहां वे पहले रहे हैं। यही कारण है कि चुनावी राजनीति के बाद पार्टी में भी किनारे हो रहे सिद्दीकी के भारत में माहौल पर दिए बयान को पॉलिटिकल स्टंट भी माना जा रहा है। क्योंकि इस बयान के बाद से वे लगातार चर्चा में हैं।