पटना: बिहार की राजनीति में 2017 एक बड़ा मोड़ लेकर आया जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हाथ मिला लिया। इस बदलाव के पीछे तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का ‘मिट्टी-मॉल घोटाले’ का अभियान अहम कारण माना जाता है।
नीतीश कुमार, लालू यादव और सुशील मोदी: बिहार की सियासत के रिश्तों का सफर
क्या था ‘मिट्टी-मॉल घोटाला’?
महागठबंधन सरकार के दौरान सुशील मोदी ने लालू यादव और उनके परिवार पर ‘मिट्टी-मॉल घोटाले’ का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि पटना में निर्माणाधीन मॉल की मिट्टी को अवैध तरीके से बेचने और सरकारी विभागों से इसे खरीदने का मामला घोटाले का हिस्सा है।
सुशील मोदी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और करीब 50 दिनों तक लगातार इसे लेकर बयानबाजी की। रोजाना नए खुलासे और आरोपों के कारण महागठबंधन सरकार पर सवाल खड़े होने लगे। लालू यादव और उनके परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को असहज स्थिति में डाल दिया।
महागठबंधन पर नीतीश का शक
नीतीश कुमार की छवि एक “सुशासन बाबू” की रही है, और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सख्त नीतियां जानी जाती हैं। जब ‘मिट्टी-मॉल घोटाले’ का मामला सामने आया, तो उन्होंने महागठबंधन पर शक जताना शुरू कर दिया।
सुशील मोदी के लगातार हमलों और लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते नीतीश कुमार को महागठबंधन का भविष्य अस्थिर नजर आने लगा। 2017 में यह शक यकीन में तब्दील हो गया और नीतीश ने महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ दोबारा सरकार बना ली।
सुशील मोदी ने कराई भाजपा-जदयू गठबंधन की वापसी
महागठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि वह भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं कर सकते। उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन कर बिहार में नई सरकार बनाई, जिसमें सुशील मोदी ने उपमुख्यमंत्री के रूप में वापसी की।
राजनीति का नया अध्याय
‘मिट्टी-मॉल घोटाले’ का मामला न केवल लालू परिवार के लिए एक बड़ी चुनौती बना, बल्कि इसने बिहार की राजनीति को भी नई दिशा दी। सुशील मोदी के इस अभियान ने भाजपा-जदयू गठबंधन की वापसी का रास्ता तैयार किया और राज्य की सियासत को पूरी तरह बदल कर रख दिया।