बिहार में जातीय गणना हो चुकी है। इसे कराने के पीछे का तर्क सामाजिक विकास था, लेकिन आर्थिक आंकड़ों के गोपनीय रहते भर में जातीय आंकड़ों पर राजनीतिक रोटियां फूल रही हैं। जनसंख्या के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग कई नेताओं ने की है तो दूसरी ओर कई नेताओं की नजर में ये आंकड़े ही फर्जी हैं, अपूर्ण हैं। लेकिन इस प्रक्रिया के पूरी होने के बाद जहां नीतीश कुमार का राजनीतिक कद बढ़ता दिख रहा है, वहीं तेजस्वी यादव की मुश्किल बढ़ रही है। नीतीश कुमार का राजनीतिक कद इसलिए बढ़ा माना जा रहा है क्योंकि उनकी जाति, कुर्मी, की जनसंख्या तो 2.87 प्रतिशत है लेकिन ईबीसी जातियों के समर्थन से वे लगातार 18 सालों से बिहार का सीएम बने हुए हैं। तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव के लिए मुश्किल यह है कि उन्हें सीएम बनाने की मांग अब जातीय गणना के आंकड़ों के हिसाब से थमने लगी है।
तेजस्वी से छूट रहा कांग्रेस का समर्थन?
अभी बिहार में जदयू और राजद के साथ कांग्रेस भी शामिल है। जातीय गणना के आंकड़े जारी होने के बाद कांग्रेस के नेता व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने एकतरह से तेजस्वी यादव पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि कैबिनेट में तुरंत एक मुस्लिम, एक अति पिछड़ा और एक अनुसूचित जाति के नेता को डिप्टी सीएम बनाना चाहिए। निश्चित तौर पर उनकी इस मांग को पूरा किया जाए, तो तेजस्वी यादव का कद कम होगा। साथ ही उन्हें हटाने की भी मांग हो सकती है। ऐसे में राजद नेताओं की तेजस्वी की सीएम बनाने की मांग अब तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाए रखने तक में सिमट सकती है। अब कांग्रेस डिप्टी सीएम पद को लेकर इतना गरम क्यों है, इसका जवाब उस मुद्दे में छिपा है जिसपर तेजस्वी चार माह से चुप हैं।
कांग्रेस को तेजस्वी के कारण नहीं मिला मंत्री पद?
जून 2023 से ही कांग्रेस नीतीश कैबिनेट में दो और मंत्री बनाने की पक्षधर रही है। राहुल गांधी जब विपक्षी गठबंधन की बैठक के लिए पटना आए थे तो उन्होंने नीतीश कुमार से इस मुद्दे पर बात भी की थी। तब नीतीश कुमार ने बार बार मंत्रिमंडल के विस्तार का फैसला तेजस्वी पर डाल दिया। यह जता दिया कि तेजस्वी जब चाहें, विस्तार हो जाएगा। लेकिन न तेजस्वी ने कोई तिथि बताई और न नीतीश ने पहल की। अब कांग्रेस को यही लग सकता है कि तेजस्वी यादव भी कांग्रेस के मंत्री बढ़ने के खिलाफ हैं। इसलिए जातीय गणना के बहाने कांग्रेस डिप्टी सीएम पद पर अन्य जातियों के नेताओं को बिठाने की मांग कर रही है।
नीतीश के लिए एक तीर से तीन निशाने
वहीं सीएम नीतीश कुमार के लिए यह जातीय गणना हर मामले में फायदेमंद ही है। इसका कारण यह है कि उनकी जाति की संख्या कम होने के बाद भी ईबीसी जातियों के समर्थन के बूते वह राज करते रहे हैं और इसमें फिलहाल कोई बदलाव होता नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर उनकी कुर्सी पर तेजस्वी को बिठाने की राजद नेताओं की हड़बड़ी भी कांग्रेस के रवैए से थम सी रही है। बड़ी बात यह कि 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार ने इस गणना के आंकड़े जारी कर अपनी प्रासंगिकता को बरकरार रखा है।