इंडिया गेट फतह की कोशिश में जुटे राजनीतिक दलों की बैठक का गवाह गेटवे ऑफ इंडिया बन रहा है। यानि दिल्ली में अपनी सरकार बनाने की कोशिश में लगे दलों की संयुक्त बैठक मुंबई में हो रही है। यह ऐसी तीसरी बैठक है, जो सबसे बड़ी है। सबसे बड़ी इस लिहाज से क्योंकि पटना में हुई पहली बैठक में 15 दल शामिल हुए थे। बेंगलुरु की दूसरी बैठक में 26 दल शामिल हुए। मुंबई की तीसरी बैठक में दलों की संख्या 28 तक पहुंच गई है। लेकिन इस एकता दिखाने वाली बैठक की सबसे बड़ी परेशानियों में से एक यह है कि जिस महाराष्ट्र में इसका आयोजन हो रहा है, वहां के दोनों बड़े क्षेत्रीय दलों में दो फाड़ हो चुके हैं।
पवार-ठाकरे का पावर आधा?
दरअसल, शिवसेना कभी ठाकरे परिवार की सरपरस्ती में चलती थी। आज दो गुटों में बंट चुकी है। नाम से लेकर सिम्बल तक ठाकरे परिवार से छिन चुका है। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को ही पार्टी का वारिस मान लिया है। जबकि शरद पवार के परिवार में हुई टूट से पार्टी भी टूट चुकी है। ऐसे में जब उम्मीद थी कि तीसरे गियर यानि तीसरी बैठक के बाद गठबंधन की चुनावी रफ्तार बढ़ेगी, इसकी संभावना कम दिख रही है।
भाजपा को सपोर्ट दे रहे दोनों दलों के बागी
महाराष्ट्र की राजनीतिक जमीन अभी ऐसी हो चुकी है कि वहां भाजपा व एनडीए के विपक्ष में अकेली कांग्रेस ही है, जिसमें कोई नेता भाजपा के सपोर्ट में नहीं है। एनसीपी का अजित पवार गुट भाजपा को समर्थन देकर राज्य सरकार में शामिल हो चुका है। तो दूसरी ओर शिवसेना का शिंदे गुट तो भाजपा के समर्थन से ही महाराष्ट्र की सरकार चला रहा है। महाराष्ट्र का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि उत्तरप्रदेश के बाद सबसे अधिक लोकसभा की 48 सीटें महाराष्ट्र में हैं। इस राज्य से अधिकतम सीटें दोनों गठबंधन चाहेंगे। लेकिन भाजपा के पास बेहतर पोजीशन अभी इसलिए है क्योंकि महाराष्ट्र में प्रमुख दो विरोधी दलों के बीच जो खाई है, उसमें एक खेमा एनडीए का हिस्सा बना हुआ है।