बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ सामने आ रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में एनडीए की बड़ी जीत के बाद केंद्र में मोदी सरकार और बिहार में एनडीए गठबंधन, इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को अक्टूबर-नवंबर के बजाय जल्दी कराने की चर्चा शुरू हो गई है। इसके पीछे भाजपा की “विनिंग मोमेंटम” की रणनीति से लेकर गठबंधन साझेदारों को “चेकमेट” करने की राजनीतिक चाल तक कई कारण गिनाए जा रहे हैं। आइए जानते हैं, क्यों बिहार इस बार समय से पहले वोटिंग की तैयारी में है:
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1. दिल्ली जीत का ‘मोमेंटम‘ और बजट का जादू
भाजपा को दिल्ली विधानसभा में जीत मिली है। अब इसी जोश के साथ बिहार में चुनाव की तारीखें आगे खिसकाना फायदेमंद होगा। इसके अलावा, केंद्र के बजट में बिहार को मिली सौगातों और इनकम टैक्स स्लैब में राहत को “प्रचार का हथियार” बनाने की योजना हो सकती है। क्योंकि यह आम चर्चा है कि बजट के एनाउंसमेंट्स का असर ज्यादा तभी रहेगा जब तक वो ताज़ा होते हैं। अक्टूबर तक इनका जादू फीका पड़ सकता है।
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2. गठबंधन की ‘टाइम बम‘ टिकिंग: चिराग, मांझी और नीतीश का समीकरण
बिहार की राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम है कि भाजपा चिराग पासवान (LJP) और जीतन राम मांझी (HAM) जैसे सहयोगियों को “सीटों की मांग” के लिए ज्यादा वक्त नहीं देना चाहती। इन दलों को अभी से सीमित सीटें आवंटित कर “उनकी सौदेबाजी की ताकत को कमजोर” करने की कोशिश है। वहीं, जदयू चाहती है कि चुनाव जल्दी हो ताकि भाजपा नीतीश कुमार के बिना अलग अभियान न चला सके। क्योंकि जदयू तो यही चाहेगी कि समय कम होगा तो भाजपा को ‘दो मुखौटे’ वाली रणनीति छोड़नी पड़ेगी।
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3. बाढ़ और नाराज़गी: प्रकृति का खतरा
बिहार में जुलाई-सितंबर बाढ़ का मौसम होता है, जो 20 से अधिक जिलों को प्रभावित करता है। अगर चुनाव से पहले बाढ़ प्रबंधन में सरकार फेल हुई, तो ग्रामीण क्षेत्रों में एनडीए के खिलाफ नाराज़गी बढ़ सकती है।
बिहार की सत्ता के इस जुगाड़ में सवाल यह है: क्या भाजपा, गठबंधन साझेदारों की महत्वाकांक्षाओं और जनता की उम्मीदों के बीच संतुलन बना पाएगी? या फिर, नीतीश कुमार एक बार फिर “चाणक्य” बनकर सभी दांव पलट देंगे? जवाब अगले 100 दिनों में मिलेगा।