नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को आर्कटिक सर्कल इंडिया फोरम में एक स्पष्ट और तीखा संदेश देते हुए यूरोपीय देशों को भारत की विदेश नीति को लेकर “उपदेशात्मक रवैये” से बचने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि भारत अब वैश्विक मंच पर ऐसे भागीदारों की तलाश में है जो व्यावहारिक सोच और पारस्परिक हितों को प्राथमिकता दें, न कि ऐसे देशों की जो खुद को नैतिकता का ठेकेदार मानते हैं।
जयशंकर ने कहा, “हम ऐसे उपदेशकों को नहीं चाहते जो खुद अपनी बातों पर अमल न करें, लेकिन दूसरों को ज्ञान देने में पीछे न रहें।” उनका यह बयान स्पष्ट रूप से उन पश्चिमी देशों पर निशाना था, जो भारत की रूस से ऊर्जा खरीद जैसे फैसलों की आलोचना करते रहे हैं।
रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का संतुलित दृष्टिकोण
विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का ज़िक्र करते हुए पश्चिम के प्रयासों की आलोचना की और कहा कि इस जटिल मुद्दे का समाधान रूस को शामिल किए बिना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत रूस के साथ एक व्यावहारिक रिश्ता बनाए रखता है, जो संसाधन प्रदाता और उपभोक्ता के रूप में एक-दूसरे के पूरक हैं।
अमेरिका और यूरोप को भी मिली सलाह
जयशंकर ने अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को “हितों की समानता” पर आधारित बताया, न कि वैचारिक समानता पर। उन्होंने कहा, “आज अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की समानता तलाशना है, न कि वैचारिक मतभेदों को हावी होने देना।”
यूरोप से भारत की अपेक्षाओं को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि अगर साझेदारी करनी है, तो आपसी समझ, संवेदनशीलता और सम्मान जरूरी है। जयशंकर के अनुसार, यूरोप को वैश्विक वास्तविकताओं को समझने की जरूरत है, खासकर बदलते हुए शक्ति संतुलन और एशिया के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए।
स्वतंत्र विदेश नीति की पुष्टि
जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत वैश्विक मंचों पर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को मुखरता से प्रस्तुत कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की प्राथमिकता अपने राष्ट्रीय हित हैं और वह किसी भी दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं।