श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनंतनाग जिले के पहलगाम के पास बैसारन घाटी में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले के 26 पीड़ितों की याद में एक स्मारक बनाने की घोषणा की है। इस हमले में ज्यादातर हिंदू पर्यटक शिकार बने थे, जिसमें एक ईसाई पर्यटक और एक स्थानीय मुस्लिम भी मारे गए थे। यह हमला कश्मीर में पिछले दो दशकों में पर्यटकों पर सबसे घातक हमलों में से एक था।
बैसारन घाटी, जो पहलगाम से लगभग 7 किलोमीटर दूर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, वहां पांच सशस्त्र आतंकियों ने M4 कार्बाइन और AK-47 राइफलों के साथ हमला किया था। यह क्षेत्र घने देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है और केवल पैदल या घोड़े की सवारी से पहुंचा जा सकता है। हमले के बाद सरकार ने सुरक्षा चूक की बात स्वीकार की, जिसमें पता चला कि बैसारन घाटी को सुरक्षा बलों को सूचित किए बिना दो महीने पहले ही पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जो अक्टूबर 2024 में केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने, ने इस स्मारक की घोषणा को दक्षिण कश्मीर में मारे गए लोगों के प्रति एक सम्मानजनक श्रद्धांजलि बताया। इस हमले के बाद पूरे कश्मीर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे, जहां श्रीनगर, पुलवामा, शोपियां, पहलगाम, अनंतनाग और बारामूला जैसे शहरों में स्थानीय लोगों ने हिंसा की निंदा की और इसे कश्मीरियत पर हमला करार दिया। मीरवाइज उमर फारूक ने श्रीनगर की जामिया मस्जिद में अपने शुक्रवार के उपदेश में पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त की थी।
इस हमले ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को जिम्मेदार ठहराया और 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (PoJK) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे भारत की ओर से आतंकवाद को करारा जवाब बताया। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सहित कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने भारत के साथ एकजुटता जताई।
उमर अब्दुल्ला की इस घोषणा को लेकर सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोगों ने इसे पीड़ितों के प्रति संवेदना और एकता का प्रतीक बताया, तो कुछ ने उनकी नीतियों पर सवाल उठाए, खासकर रोहिंग्या और बांग्लादेशी शरणार्थियों को लेकर। एक यूजर ने लिखा, “सच्चे नेता हमेशा देशवासियों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। मैंने कभी कश्मीर की यात्रा नहीं की, लेकिन अब परिवार के साथ जल्द ही वहां जाने का मन बना लिया है। जय हिंद।”
यह स्मारक न केवल पीड़ितों की स्मृति को संजोएगा, बल्कि कश्मीर में शांति और सुरक्षा के लिए एक नए संकल्प का प्रतीक भी बनेगा।