बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच जमुई विधानसभा सीट (Jamui Vidhan Sabha 2025) एक बार फिर सुर्खियों में है। यह सीट न सिर्फ अपने ऐतिहासिक राजनीतिक उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां जातीय समीकरण भी हमेशा निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। जमुई विधानसभा, जमुई लोकसभा क्षेत्र की छह सीटों में से एक है, जिसने राज्य की राजनीति में कई दिलचस्प मोड़ देखे हैं।
चुनावी इतिहास
1957 में जब जमुई स्वतंत्र विधानसभा सीट बनी, तब से अब तक यहां 17 चुनाव हो चुके हैं — 16 आम और 1 उपचुनाव। इन चुनावों के इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस ने यहां पांच बार जीत दर्ज की है। 1957 में CPI ने कांग्रेस के साथ साझा जीत हासिल की थी, जो वामपंथ के लिए इस क्षेत्र की एकमात्र जीत साबित हुई। इसके बाद समाजवादी, जनता पार्टी, जनता दल, जेडीयू और आरजेडी ने बारी-बारी से अपना परचम लहराया।
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राजनीतिक रूप से देखा जाए तो जमुई ने सत्ता परिवर्तन के कई दौर देखे हैं। 80 के दशक में निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन मजबूत रहा, जबकि 2000 के बाद से यहां जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता है।
इस सीट से अब तक 11 बार राजपूत समुदाय के नेता विजयी रहे हैं। वहीं, यादव वर्ग से ताल्लुक रखने वाले विजय प्रकाश यादव ने 2015 में आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2020 में पहली बार बीजेपी ने यहां अपना खाता खोला। ओलंपियन शूटर और बीजेपी प्रत्याशी श्रेयसी सिंह ने आरजेडी के विजय प्रकाश यादव को 41,049 वोटों के अंतर से हराया था
जातीय समीकरण
अब 2025 के चुनाव में श्रेयसी सिंह के सामने दोहरी चुनौती है — एक तरफ सत्ता विरोधी लहर से पार पाना और दूसरी तरफ यादव-राजपूत-मुस्लिम समीकरण के बीच अपने जनाधार को मजबूत रखना। जमुई सीट पर करीब 2.91 लाख मतदाता हैं, जिनमें यादव, मुस्लिम और राजपूत समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। साथ ही, अनुसूचित जाति की आबादी करीब 19 प्रतिशत है, जो हर बार परिणामों को प्रभावित करती है।






















