नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने को मंजूरी दे दी है, जो 2025 में शुरू होकर 2026 तक पूरी होगी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण को 50% तक सीमित करने के फैसले के मद्देनजर महत्वपूर्ण है, क्योंकि जातिगत जनगणना से प्राप्त आंकड़े आरक्षण नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं। इस बीच, भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच यह कदम राजनीतिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
जातिगत जनगणना का ऐलान
1931 के बाद पहली बार, अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) सहित सभी जातियों की गणना की जाएगी। अनुमान के मुताबिक, OBC देश की आबादी का 52% से अधिक हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को बढ़ावा देगा।
सुप्रीम कोर्ट की 50% सीमा
1992 के इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 50% तक सीमित करने का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया कि इस सीमा को पार करने के लिए “असाधारण परिस्थितियों” और ठोस आंकड़ों की जरूरत होगी। जातिगत जनगणना से प्राप्त डेटा राज्यों और केंद्र को इस सीमा को चुनौती देने या संशोधित करने का आधार दे सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- भाजपा: सरकार ने इस फैसले को सामाजिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया। सूत्रों के मुताबिक, यह कदम बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में OBC मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
- कांग्रेस: नेता राहुल गांधी ने इसे अपनी पार्टी की मांग की जीत बताया। उन्होंने कानपुर की एक जनसभा में कहा, “जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय का पहला कदम है।”
- विपक्षी दलों: समाजवादी पार्टी और राजद ने फैसले का स्वागत किया, लेकिन इसे लागू करने में पारदर्शिता की मांग की।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई, ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) को जिम्मेदार ठहराया है। ऐसे में जातिगत जनगणना का ऐलान सरकार की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य सुरक्षा संकट से ध्यान हटाकर घरेलू मुद्दों पर समर्थन जुटाना हो सकता है।
सऊदी अरब ने दोनों देशों से संयम बरतने और कूटनीतिक समाधान की अपील की है। क्षेत्रीय स्थिरता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि भारत घरेलू और विदेश नीति में संतुलन बनाए। जातिगत जनगणना का फैसला घरेलू स्तर पर सामाजिक एकता को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
जातिगत जनगणना से OBC और अन्य समुदायों की सटीक आबादी का पता चल सकता है, जो आरक्षण बढ़ाने की मांग को बल देगा। हालांकि, तमिलनाडु (69%) और बिहार (65% + 10% EWS) जैसे राज्यों में पहले से ही 50% की सीमा पार करने के कारण कानूनी चुनौतियां सामने हैं। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के चलते सरकार को मजबूत कानूनी आधार तैयार करना होगा।
जातिगत जनगणना का फैसला भारत की सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता को नया आकार दे सकता है। यह कदम जहां सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण है, वहीं भारत-पाकिस्तान तनाव और आगामी चुनावों के संदर्भ में इसका रणनीतिक महत्व भी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर सऊदी अरब, की नजरें भारत के अगले कदमों पर टिकी हैं।