बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने वक्फ संशोधन बिल पर एनडीए के साथ रहने का रास्ता क्या चुना, पार्टी में बगावत का बवाल उठ खड़ा हुआ। धड़ाधड़ इस्तीफे आने लगे और इस्तीफों की संख्या 7 पहुंच गई। ये सभी इस्तीफ मुसलमान नेताओं के हैं। जिसके बाद से विपक्ष यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश में जुटा कि JDU के मुसलमान पार्टी की नीति से नाराज हैं। लगे हाथ जदयू ने चार मुसलमान नेताओं को वक्फ संशोधन बिल के समर्थन के लिए प्रेस कांफ्रेंस में बिठाने की चाल चल दी। लेकिन इस पूरी जद्दोजहद में पार्टी के उन मुसलमान नेताओं को खास फर्क नहीं पड़ा, जिन्होंने संगठन से सरकार की दूरी तय कर ली है। क्योंकि इस्तीफा देने वाले सभी नेता संगठन से ही जुड़े हैं।
जिन सात नेताओं ने जदयू छोड़ने का ऐलान किया है उन्हें जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने छोटा नेता बताया है। इन नेताओं की वरीयता पर गौर करें तो ये सभी संगठन से जुड़े हैं। इसमें मो. कासिम अंसारी और मो. दिलशान राईन तो कार्यकर्ता ही हैं। जबकि अन्य में प्रदेश महासचिव मो. तबरेज सिद्दीकी अलीग, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मो. शाहनवाज मलिक, पूर्व प्रदेश सचिव एम. राजू नैयर, नवादा के जिला सचिव मो. फिरोज खान और अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष नदीम अख्तर शामिल हैं।
पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में जो शामिल हैं, उनसे जदयू को खास फर्क नहीं पड़ता, ऐसा जदयू नेतृत्व के करीबियों का कहना है। संगठन से सरकार का हिस्सा बनने वाले नेताओं को वक्फ बिल पर पार्टी की राय से खास फर्क नहीं पड़ता।
पार्टी के एमएलसी में गुलाम गौस, अफाक अहमद खां, डॉ. खालिद अनवर शामिल हैं। इसमें शुरुआत में गुलाम गौस ने कुछ बातें जरूर कहीं लेकिन उन्होंने न तो जदयू से इस्तीफा दिया और न ही एमएलसी पद से। इसी तरह अफाक अहमद खां और डॉ. खालिद अनवर भी एमएलसी बने हुए हैं और वक्फ बिल में पार्टी के समर्थन को अपना समर्थन दे रहे हैं।
जदयू के अन्य मुस्लिम नेताओं में मो. जमां खान भी हैं जो बिहार सरकार में मंत्री हैं। लेकिन वे भी वक्फ बिल के मामले में पार्टी के स्टैंड के साथ हैं।
कुलमिलाकर जदयू के उन्हीं मुस्लिम नेताओं को वक्फ बिल में संशोधन से फर्क पड़ा है, जो संगठन से सरकार की दूरी तय नहीं कर पाए हैं।






















