बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी बढ़ने के साथ ही मधुबनी जिले की झंझारपुर विधानसभा सीट (Jhanjharpur Vidhansabha Seat) पर सबकी नज़रें टिकी हुई हैं। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 38 यानी झंझारपुर का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। 1951 से लेकर 1967 तक कांग्रेस का एकछत्र दबदबा इस सीट पर कायम रहा, लेकिन 1990 के दशक के बाद सियासी तस्वीर बदलने लगी। यही वजह है कि झंझारपुर को आज “राजनीतिक प्रयोगशाला” कहा जाने लगा है, जहां हर चुनाव में समीकरण नए रूप में सामने आते हैं।
चुनावी इतिहास
1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कपिलेश्वर शास्त्री विजयी रहे और इसके बाद लगातार कांग्रेस ने ही इस सीट पर कब्जा जमाए रखा। 1972 से 1990 तक भी कांग्रेस का प्रभाव दिखा, लेकिन 1995 में जनता दल के रामावतार चौधरी ने जीत का परचम लहराकर कांग्रेस की पकड़ को कमजोर किया। इसके बाद राजनीति ने करवट बदली और 2000 में आरजेडी, फिर 2005 और 2010 में जेडीयू ने सत्ता हासिल की। खास बात यह रही कि कांग्रेस और जेडीयू ही ऐसे दल हैं जिन्हें इस सीट पर लगातार दो बार जीत दर्ज करने का गौरव प्राप्त है।
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2015 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने यहां अपनी पकड़ मजबूत की। गुलाब यादव ने बीजेपी प्रत्याशी नितीश मिश्रा को कांटे की टक्कर में हराया था। इस चुनाव में जीत का अंतर महज 834 वोटों का था, जो झंझारपुर की राजनीति की टेढ़ी-मेढ़ी राहों को दिखाता है। हालांकि, 2020 में तस्वीर पूरी तरह पलट गई और भाजपा के नितीश मिश्रा ने जोरदार वापसी की। उन्होंने सीपीआई के राम नारायण यादव को 41,788 वोटों के विशाल अंतर से शिकस्त दी। नितीश मिश्रा को 94,854 मत मिले जबकि यादव को 53,066 वोट ही हासिल हुए।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण की बात करें तो झंझारपुर विधानसभा में ब्राह्मण, यादव और अति पिछड़ा वर्ग का वर्चस्व सबसे अहम है। यहां 35 प्रतिशत मतदाता अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। यादव और ब्राह्मण दोनों की हिस्सेदारी लगभग 20-20 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 15 प्रतिशत हैं। बाकी 10 प्रतिशत अन्य जातियों के मतदाता चुनावी गणित को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि पार्टियां हर बार उम्मीदवार उतारते समय जातीय समीकरणों का गहन विश्लेषण करती हैं।
इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,71,231 पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें 1,42,925 पुरुष और 1,28,301 महिलाएं शामिल हैं। 2025 के चुनाव में यहां मुकाबला दिलचस्प रहने वाला है क्योंकि बीजेपी के नितीश मिश्रा अपनी सीट बचाने की पूरी कोशिश करेंगे, जबकि आरजेडी इस क्षेत्र में अपनी पुरानी पकड़ वापस हासिल करना चाहेगी। कांग्रेस और वाम दल भी इस बार रणनीतिक भूमिका निभा सकते हैं।
झंझारपुर का चुनावी समीकरण यह दर्शाता है कि यहां सत्ता का रास्ता जातीय समीकरण, उम्मीदवार की व्यक्तिगत लोकप्रियता और गठबंधन की मजबूती पर निर्भर करता है। यही वजह है कि यह सीट हर चुनाव में बिहार की राजनीति की दिशा और दशा को नए सिरे से परिभाषित करती है।






















