रांची : केंद्र सरकार ने झारखंड के झरिया में पिछले 100 वर्षों से जल रही भूमिगत कोयला आग से निपटने और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए 5,940 करोड़ रुपये के संशोधित झरिया मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। यह योजना, जो 2009 में शुरू किए गए मूल प्लान का उन्नत रूप है, आग से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के लिए सतत आजीविका और आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
झरिया कोयला क्षेत्र, जो भारत के सबसे बड़े कोकिंग कोयला भंडार (19.4 अरब टन) में से एक है, 1922 से अंग्रेजी शासन के दौरान शुरू हुई इस आग से जूझ रहा है। इस आग ने पिछले एक सदी में 37 मिलियन टन कोयले को नष्ट कर दिया है, जिससे भू-धंसान, जल और वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है। 2009 के मूल मास्टर प्लान के तहत आग प्रभावित स्थलों की संख्या 77 से घटाकर 27 की गई, लेकिन अभी भी 1.8 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित है, जैसा कि बिजनेस स्टैंडर्ड ने रिपोर्ट किया।
नई योजना में विशेष ध्यान आजीविका सृजन और कौशल विकास पर दिया गया है। इसके तहत प्रभावित परिवारों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और आय-सृजन के अवसर पैदा किए जाएंगे। सरकार का लक्ष्य इन परिवारों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है। इसके अलावा, पुनर्वास और क्षेत्र के समग्र विकास के लिए व्यापक कदम उठाए जाएंगे।
कोयला सीम आग को बुझाना वैश्विक स्तर पर कठिन माना जाता है, क्योंकि ये आग सीमित ऑक्सीजन और गहरे भूमिगत क्षेत्रों में जलती हैं। अमेरिका के सेंट्रलिया, पेंसिल्वेनिया में 1962 से जल रही आग इसका एक उदाहरण है। विशेषज्ञों के अनुसार, नाइट्रोजन का उपयोग करके इन आगों को नियंत्रित करने की तकनीक (जैसा कि 2025 के विकिपीडिया डेटा में उल्लेख है) लागत प्रभावी हो सकती है, लेकिन झरिया जैसे क्षेत्रों में चुनौतियां बनी हुई हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू की गई यह योजना झरिया के निवासियों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि आग को पूरी तरह बुझाने के लिए दीर्घकालिक रणनीति और उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होगी। सरकार के इस कदम से स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद है।