[Team Insider] झारखंड के गुमला जिले में स्थित बाबा टांगीनाथ धाम एक प्रसिद्ध प्राचीन सांस्कृतिक धार्मिक स्थल है।यह ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थल के रूप में जाना जाता है। यह शैव धर्म से घनिष्ठ रूप से संबंधित है। दो तीन महत्वपूर्ण संक्षिप्त अभिलेख यहां से मिले हैं।जिसकी जानकारी और उसका छापा दिल्ली से आई सहायक अधीक्षण पुरालेख विद डॉ. अर्पिता रंजन ने लिया है। जिसके अध्ययन से कई अहम जानकारियां मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
पुरातात्विक अवशेषों में उड़ीसा के मंदिर स्थापत्य कला की झलक
दरअसल जिले के डुमरी स्थित शीर्ष धार्मिक स्थल बाबा टांगीनाथ धाम
के पुरातात्विक अवशेषों में उड़ीसा के मंदिर स्थापत्य कला की झलक देखी जा सकती है और विभिन्न प्रकार के प्रस्तर खंडों पर उमा महेश्वर, शिवलिंग, विष्णु प्रतिमा, सूर्य प्रतिमा के अलावा कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं।
मूर्तियों और अभिलेखों का गहनता से अध्ययन
जिले के डुमरी स्थित शीर्ष धार्मिक स्थल बाबा टांगीनाथ धाम का दिल्ली से आई सहायक अधीक्षण पुरालेख विद डॉ. अर्पिता रंजन ने दौरा किया।उनके साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रांची मंडल के डॉ. नीरज कुमार मिश्रा भी मौजूद रहे। इस दौरान धाम परिसर में अवस्थित विभिन्न मूर्तियों और अभिलेखों का गहनता से अध्ययन किया। वहीं इस संबंध में डॉ. अर्पिता ने कहा कि इस स्थल के भौगोलिक स्थिति छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के समीप होने से इस क्षेत्र में सांस्कृतिक आदान प्रदान की झलक साफ देखी जा सकती है।
अनुसंधान के लिए बेहद महत्वपूर्ण
मूर्ति कला और स्थापत्य कला की दृष्टि से टांगीनाथ धाम अत्यंत ही उपयोगी है और अनुसंधान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मंदिर प्रांगण में प्रस्तर खंडों के अतिरिक्त पकी हुई ईंटों की अलग अलग प्रकार की अन्य संरचनाएं भी प्राप्त हैं। जिसमें एक छोटी सीढ़ी युक्त बावली अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
शैव,वैष्णव और शाक्त संप्रदाय का अनोखा संगम
प्राचीन काल की एक अद्भुत सांकेतिक मानवाकृति और एक वृहदाकार तलवार जो की लोहे की बनी है और यह जंग रोधी है। यह त्रिशुलाकार मानवाकृति शिव के पशुपति रूप और इसका संदर्भ प्राचीन ताम्रनिधियों जो की भारत के अन्य विभिन्न भागों से प्राप्त हैं। उनके आलोक में देखा जाना बेहद ही रोचक है। साथ ही सनातन धर्म के अभ्युदय और सांस्कृतिक का अनूठा समीश्रण है। जो शैव, वैष्णव और शाक्त संप्रदाय का अनोखा संगम है।