पटना में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संस्थापक एवं केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने दलित राजनीति (Jitan Ram Manjhi Dalit Politics) को नई दिशा देने वाला बयान दिया। मांझी ने साफ कहा कि जब तक अनुसूचित जाति के लिए अलग मतदाता सूची नहीं बनेगी, तब तक दलित समाज का वास्तविक उत्थान संभव नहीं है। उन्होंने दावा किया कि संख्या में कम होने के बावजूद सवर्ण और पिछड़े वर्ग के मतदाता दलितों के राजनीतिक अधिकारों को सीमित कर देते हैं, इसलिए अलग मतदाता सूची समय की जरूरत है।

मांझी के इस बयान ने राज्य की राजनीतिक बहस को नए मोड़ पर ला दिया है। उन्होंने कहा कि अलग मतदाता सूची का विचार नया नहीं है बल्कि इसी तरह का मॉडल डॉ. भीमराव आंबेडकर ने पूना पैक्ट के दौरान प्रस्तावित किया था। मांझी का तर्क है कि दलितों के लिए स्वतंत्र राजनीतिक प्रतिनिधित्व तभी संभव है, जब उन्हें मतदान व्यवस्था में अलग पहचान मिले। उनका कहना था कि आज भी दलित समाज अपने अधिकारों और राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर संघर्ष कर रहा है, इसलिए इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए।
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कार्यक्रम के दौरान मांझी ने कहा कि बाबा साहब ने जिस संविधान का निर्माण किया, उसी की वजह से दलितों और पिछड़ों को समान अधिकार की वैधानिक गारंटी मिली। उन्होंने कहा कि हम उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं, क्योंकि उन्होंने वंचित समाज को सम्मान दिलाने की ऐतिहासिक पहल की। उन्होंने 1956 में बाबासाहेब द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म का भी उल्लेख किया और कहा कि आंबेडकर जाति-विहीन समाज की स्थापना चाहते थे, इसलिए बौद्ध धर्म को उनके आदर्श का प्रतीक माना जाता है।
परिनिर्वाण दिवस के इस कार्यक्रम में अविनाश कुमार, विजय यादव, रघुवीर मोची समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने माहौल को विचारपूर्ण बना दिया। मांझी के बयान को कई राजनीतिक विशेषज्ञ दलित राजनीति की नई रणनीति मान रहे हैं। उनका मानना है कि बिहार की बदलती सामाजिक संरचना में इस प्रकार की मांगें आने वाले समय में राजनीतिक विमर्श को गहराई से प्रभावित कर सकती हैं।






















