नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर लगी आग के बाद बरामद हुई जली हुई नकदी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की सिफारिश की गई है, जिससे न्यायपालिका में एक नई बहस छिड़ गई है।
14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास (30 तुगलक क्रिसेंट, नई दिल्ली) में आग लगने की घटना ने सबको हिला दिया। आग बुझाने के दौरान स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी और शराब की बोतलें बरामद हुईं, जिसने इस मामले को सनसनीखेज बना दिया। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 22 मार्च को एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू ने की।
समिति ने 10 दिनों तक मामले की गहन पड़ताल की, जिसमें 55 गवाहों से पूछताछ और जस्टिस वर्मा के आवास का दौरा शामिल रहा। रिपोर्ट में पाया गया कि स्टोर रूम, जहां नकदी मिली, पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार की पूरी निगरानी थी, और बिना इजाजत किसी को भी वहां प्रवेश की अनुमति नहीं थी। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपों में पर्याप्त सच्चाई है और यह मामला इतना गंभीर है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।
हालिया खुलासे के मुताबिक, आग की तीव्रता शराब की बोतलों के कारण और बढ़ गई, जो स्टोर रूम में रखी थीं। यह जानकारी इस मामले को और जटिल बनाती है, क्योंकि यह सवाल उठता है कि एक न्यायाधीश के आवास पर इतनी बड़ी मात्रा में नकदी और शराब का भंडारण कैसे संभव हुआ।
दूसरी ओर, जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने दावा किया कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने स्टोर रूम में नकदी रखी थी। उन्होंने इसे एक साजिश करार देते हुए कहा कि उनके खिलाफ बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया है, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य सौंपा नहीं गया है।
यह मामला भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस तरह के आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह न्यायिक प्रणाली के लिए गंभीर चुनौती होगी। सरकार के सूत्रों के अनुसार, मॉनसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है, जिससे इस विवाद का पटाक्षेप जल्द हो सकता है।
जांच समिति की 64 पन्नों की रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन इसके निष्कर्ष न्यायपालिका के भीतर सुधार की मांग को तेज कर सकते हैं। इस बीच, जस्टिस वर्मा पर दबाव बढ़ता जा रहा है, और उनकी प्रतिक्रिया आने वाले दिनों में इस मामले की दिशा तय करेगी।