बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ आ गया है। जिस राज्य में जातिगत राजनीति की पकड़ सबसे मजबूत मानी जाती है, वहां अब बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे केंद्र में आ गए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इस बार चुनाव जातिगत समीकरणों से अलग होकर इन वास्तविक मुद्दों पर लड़ा जाएगा?
युवा वोट बैंक पर नई लड़ाई
अगर बीते कुछ वर्षों की राजनीति को देखें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को तेजस्वी यादव ने बड़े पैमाने पर उठाया था। उन्होंने 10 लाख नौकरियों का वादा करके युवाओं को आकर्षित किया और परिणामस्वरूप आरजेडी सरकार बनाने के करीब पहुंच गई थी। लेकिन अब वही मुद्दे दो और बड़े नेताओं – कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर – ने हथिया लिए हैं।
कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार ने हाल ही में बिहार में व्यापक पदयात्रा की, जिसका मुख्य नारा था – पलायन रोको, नौकरी दो। यही मुद्दे प्रशांत किशोर भी उठा रहे हैं। उन्होंने अपनी जनस्वराज पार्टी के माध्यम से बिहार बदलाव रैली का ऐलान किया है, जिसमें भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन को ही मुख्य विषय बनाया गया है। सवाल यह है कि क्या तेजस्वी यादव के मुद्दों को ही अब नए खिलाड़ी हाईजैक कर रहे हैं?
क्या तेजस्वी का वोट बैंक खिसक रहा है?
इस सियासी परिदृश्य में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि तेजस्वी यादव ने जो वर्षों से युवा वोट बैंक तैयार किया था, क्या अब वह दरकने लगा है? कन्हैया कुमार कांग्रेस के नेता हैं और कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा भी है, ऐसे में जब वे बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे उठाते हैं तो क्या इससे आरजेडी को नुकसान होगा? दूसरी ओर, प्रशांत किशोर भी इन्हीं मुद्दों पर लोगों को लामबंद कर रहे हैं।
पीके और केके – तेजस्वी के लिए चुनौती?
अब बिहार की राजनीति में दो नए चेहरे – पीके (प्रशांत किशोर) और केके (कन्हैया कुमार) – बड़ी चुनौती बन चुके हैं। एक ओर प्रशांत किशोर महागठबंधन से बाहर रहकर तेजस्वी यादव के पारंपरिक मुद्दों को उठा रहे हैं, वहीं कन्हैया कुमार महागठबंधन में रहते हुए तेजस्वी के वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह मुद्दे कितनी अहम भूमिका निभाते हैं और क्या तेजस्वी यादव इन चुनौतियों का सामना कर पाते हैं या नहीं। बिहार की राजनीति में यह सियासी खेल अब और भी रोमांचक हो गया है।