बिहार की राजनीति में कन्हैया कुमार ने अपनी सक्रियता को लेकर अब कोई संदेह नहीं छोड़ा है। अपनी यात्रा के दौरान सहरसा पहुंचे कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने बिहार की सबसे बड़ी समस्या— पलायन को चुनावी मुद्दा बनाने का ऐलान कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि यह यात्रा सिर्फ सामाजिक आंदोलन तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि चुनाव में भी इसका असर दिखेगा।
कन्हैया ने यह भी कहा कि हम एनजीओ नहीं हैं, हम राजनीति में हैं। इस यात्रा का संबंध चुनाव से इतना ही है, और कल को हम भी चुनाव लड़ेंगे।
पलायन पर राजनीति क्यों नहीं?
कन्हैया कुमार ने बिहार की राजनीति पर एक बड़ा सवाल उठाया कि “अगर हर पार्टी, हर जाति, हर धर्म, हर क्षेत्र के लोग मानते हैं कि बिहार में पलायन एक बड़ी समस्या है, तो इस पर सामूहिक प्रयास क्यों नहीं हो रहे?”
उन्होंने कहा कि बिहार से मजदूर से लेकर अधिकारी तक हर राज्य में बसे हुए हैं, लेकिन यहां विकास नहीं हो पा रहा। इसके लिए उन्होंने नकारात्मक राजनीति को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि
जो नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति करेगा, उसे इससे फायदा होगा, लेकिन समाज का भला नहीं होगा।
महागठबंधन पर ‘दबाव की राजनीति’?
कन्हैया ने अपने बयान से यह संकेत भी दे दिया कि अगर कांग्रेस बिहार में महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ती है, तो वह पलायन के मुद्दे को केंद्र में लाने के लिए अपने सहयोगी दलों पर दबाव बनाएंगे। उन्होंने कहा कि हम महागठबंधन में रहेंगे, लेकिन यह सवाल प्रमुखता से उठाएंगे। पहले आप, पहले आप में ट्रेन छूट न जाए, इसलिए हम खुद शुरुआत कर रहे हैं।
कन्हैया कुमार ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए महिलाओं को नगद सहायता देने की योजना का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि सबसे पहले कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में महिलाओं को नगद कैश ट्रांसफर का वादा किया। शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर दबाव बना और उन्होंने इसे लागू कर दिया। अब यह राजनीति की परंपरा बन चुकी है।
इसी तरह उन्होंने बिहार के पलायन को भी एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की बात कही और कहा कि अगर इस पर गंभीरता से पहल की जाए, तो सभी दल इसे अपने एजेंडे में शामिल करने को मजबूर होंगे।