Kishanganj Vidhan Sabha: किशनगंज विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-54) बिहार की सबसे चर्चित और संवेदनशील सीटों में गिनी जाती है। यह सीट किशनगंज जिले के अंतर्गत आती है, जिसे 14 जनवरी 1990 को पूर्ण रूप से जिला घोषित किया गया था। राजनीतिक दृष्टि से किशनगंज को ‘कांग्रेस का गढ़’ कहा जाता रहा है, लेकिन बीते एक दशक में यहां AIMIM और भाजपा ने भी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
किशनगंज सीट पर कांग्रेस का प्रभाव लंबे समय तक कायम रहा। 2010 और 2015 में कांग्रेस के डॉ. मोहम्मद जावेद लगातार विधायक बने। 2019 में उनके सांसद बनने के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार और उनकी मां सईदा बानो को AIMIM के क़मरुल होदा ने करारी शिकस्त दी थी। हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और इज़हारुल हुसैन ने भाजपा की स्वीटी सिंह को 1381 वोटों से हराकर सीट अपने नाम की।
राजनीतिक इतिहास और सत्ता की अदला-बदली
अगर राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो 1977 से अब तक यह सीट कई बार कांग्रेस, जनता दल, आरजेडी और AIMIM के बीच घूमती रही है। 1990 और 1985 में जनता दल के मो. मुश्ताक मुन्ना ने जीत हासिल की, जबकि 2000 और 2005 में आरजेडी ने बढ़त बनाई। 2010 से कांग्रेस ने अपनी पकड़ फिर मजबूत की और लगातार दो बार जीत दर्ज की। AIMIM ने 2019 के उपचुनाव में कांग्रेस को झटका जरूर दिया, लेकिन 2020 में यह सीट दोबारा कांग्रेस के खाते में चली गई।
जातीय और सामाजिक समीकरण
किशनगंज का चुनावी गणित पूरी तरह से जातीय समीकरण पर निर्भर करता है। यह सीट मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, जहां लगभग 68% आबादी मुस्लिम समुदाय की है। यही कारण है कि कांग्रेस और AIMIM दोनों ही यहां मुस्लिम मतदाताओं को साधने में जुटी रहती हैं। दूसरी ओर, भाजपा का वोट बैंक यहां मुख्य रूप से हिंदू मतदाताओं—यादव, सहनी, ब्राह्मण, दलित और आदिवासी समुदाय—पर आधारित है, जिनकी हिस्सेदारी लगभग 31% है। यही समीकरण हर चुनाव में प्रत्याशियों की किस्मत तय करता है।
2025 का चुनावी परिदृश्य
आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में किशनगंज सीट पर कांग्रेस अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश करेगी। AIMIM फिर से बड़ी चुनौती पेश करने के मूड में है, जबकि भाजपा इस सीट को मुस्लिम बहुल क्षेत्र की ‘नब्ज’ बदलने के अवसर के रूप में देख रही है। चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, जहां मुस्लिम वोटों के बंटवारे का सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है।
किशनगंज की यह सीट न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की निगाहों में रहती है, क्योंकि यह मुस्लिम बहुल जिला होने के कारण राष्ट्रीय राजनीति का भी केंद्र बिंदु बन जाता है। 2025 में यहां का परिणाम यह तय करेगा कि क्या कांग्रेस का गढ़ बरकरार रहेगा या AIMIM और भाजपा मिलकर उसे चुनौती देंगे।






















