बिहार कांग्रेस में नए नेतृत्व की एंट्री हो चुकी है। पार्टी के नए प्रभारी कृष्णा अलावरू गुरुवार को तीन दिवसीय दौरे पर पटना पहुंचे, जहां कार्यकर्ताओं ने उनका भव्य स्वागत किया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश देखने लायक था, जैसे किसी लंबे इंतजार के बाद उन्हें नई ऊर्जा मिल गई हो। पटना एयरपोर्ट से लेकर सदाकत आश्रम तक पूरे माहौल में ‘कांग्रेस ज़िंदाबाद’ के नारे गूंजते रहे।
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“चुनौतियों से भागूंगा नहीं, सामना करूंगा”
पटना पहुंचते ही अलावरू ने कांग्रेस को दोबारा मजबूत करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि “बिहार आकर बहुत अच्छा लग रहा है। कांग्रेस पार्टी के हर कार्यकर्ता और नेता के साथ मिलकर काम करूंगा। बिहार कांग्रेस को उसकी पुरानी ताकत वापस दिलाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई है, और मैं इसे पूरी मजबूती से निभाऊंगा। चुनौती कैसी भी हो, मैं उससे भागूंगा नहीं, उसका सामना करूंगा।”
कौन हैं कृष्णा अलावरू?
बिहार कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अलावरू कर्नाटक से आते हैं और उनकी गिनती युवा कांग्रेस के बड़े नेताओं में होती है। वर्तमान में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर हैं और इससे पहले युवा कांग्रेस के प्रभारी के तौर पर भी उन्होंने काम किया है। बिहार की राजनीति से वे पहले से ही परिचित हैं और संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, जिसे देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश प्रभारी बनाया है।
क्या बिहार कांग्रेस को मिलेगी नई दिशा?
बिहार में कांग्रेस की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। एक समय राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाली कांग्रेस आज सहयोगी दलों पर निर्भर होकर रह गई है। बीते कुछ चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा और उसकी भविष्य की रणनीति भी असमंजस में रही। ऐसे में अलावरू की नियुक्ति क्या कांग्रेस के लिए नया बदलाव साबित होगी? यह बड़ा सवाल है।
अपने इस दौरे में अलावरू पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे और विधानसभा चुनावों को लेकर रणनीति पर मंथन करेंगे। कांग्रेस नेतृत्व को फिर से मजबूती देने के लिए जमीनी स्तर पर संगठन को खड़ा करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी।
कांग्रेस के सामने चुनौतियां क्या हैं?
- संगठन की कमजोरी: बिहार में कांग्रेस का संगठन लंबे समय से निष्क्रिय रहा है।
- जनाधार में गिरावट: पार्टी को अपने पुराने वोट बैंक को फिर से जोड़ना होगा।
- महागठबंधन में स्थिति: राजद के दबदबे के कारण कांग्रेस की भूमिका सीमित होती जा रही है।
- नेतृत्व संकट: स्थानीय स्तर पर कांग्रेस को नए और प्रभावी नेताओं की जरूरत है।