Kurtha Vidhan Sabha 2025: अरवल जिले की कुर्था विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 215), बिहार की राजनीति में एक अहम पहचान रखती है। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट लंबे समय तक समाजवादी विचारधारा का गढ़ रही है। 1951 में पहली बार विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आई कुर्था सीट ने बिहार की राजनीतिक उठापटक को करीब से देखा है। यहां की जनता ने हर दौर में बदलाव के संकेत दिए हैं—कभी समाजवादी लहर में बहकर, तो कभी जातीय समीकरणों के सहारे सत्ताधारी दलों को दिशा दी है।
चुनावी इतिहास
कुर्था का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां शुरूआती दशकों में सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, शोषित समाज दल और जनता पार्टी जैसी समाजवादी धाराओं ने मजबूत पकड़ बनाई थी। कांग्रेस ने भी दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की, लेकिन वह पकड़ लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी। 1967 और 1969 में बिहार के प्रख्यात समाजवादी नेता जगदेव प्रसाद उर्फ जगदेव बाबू ने यहां से लगातार दो बार जीत दर्ज कर समाजवादी राजनीति की गूंज पूरे प्रदेश में फैला दी। उनके पुत्र नागमणि कुशवाहा ने भी दो बार इस सीट से जीत हासिल कर परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया।
बीते तीन दशकों में कुर्था विधानसभा क्षेत्र की राजनीति ने समाजवाद से निकलकर RJD और JDU के बीच सीधी टक्कर का रूप ले लिया है। लोक जनशक्ति पार्टी ने भी एक बार यहां जीत का स्वाद चखा, लेकिन मुख्य मुकाबला हमेशा इन दोनों दलों के बीच केंद्रित रहा है।
2010 में जनता दल (यूनाइटेड) के सतीदेव सिंह ने कुर्था से जीत दर्ज कर नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी की पकड़ मजबूत की। इस जीत के बाद 2015 में भी उन्होंने दोबारा मैदान में उतरकर आरजेडी उम्मीदवार को मात दी और लगातार दूसरी बार जनता का विश्वास हासिल किया। लेकिन राजनीति में बदलाव ही स्थायी है—और 2020 के विधानसभा चुनाव ने यही दिखाया। इस बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के उम्मीदवार बागी कुमार वर्मा ने सतीदेव सिंह को 27,810 मतों के अंतर से पराजित कर सीट पर कब्जा जमाया। यह परिणाम न केवल RJD की मजबूती का संकेत था, बल्कि यह भी साबित हुआ कि कुर्था में मतदाता अब विकास और स्थानीय नेतृत्व के आधार पर फैसला करने लगे हैं।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरणों की बात करें तो कुर्था की राजनीति मुख्य रूप से कुशवाहा, यादव और भूमिहार समुदायों पर टिकी है। इन तीनों के अलावा राजपूत, रविदास, कोइरी, कुर्मी और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी लगभग 19.04% और मुस्लिम मतदाता करीब 8.3% हैं। यह सीट पूरी तरह ग्रामीण है, जहां विकास, रोजगार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे हर चुनाव में प्रमुख रहते हैं।






















