Kutumba Assembly Election 2025: औरंगाबाद जिले की कुटुंबा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 222) सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है और 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी। कुटुंबा न सिर्फ जातीय समीकरणों के लिहाज से खास है बल्कि यह कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है, क्योंकि इसके दो बार के विधायक राजेश कुमार अब बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं।
चुनावी इतिहास
2010 में जब यहां पहला चुनाव हुआ, तब जेडीयू के ललन राम ने जीत हासिल की थी। लेकिन 2015 में इस सीट का समीकरण पूरी तरह बदल गया। उस समय महागठबंधन के तहत कांग्रेस को यह सीट मिली और राजेश कुमार (राजेश राम) ने जीत दर्ज करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के बेटे संतोष सुमन को शिकस्त दी। राजेश कुमार ने 2015 में 10,098 वोटों से जीत दर्ज की, जिसे उन्होंने 2020 में और मजबूत किया—इस बार जीत का अंतर 16,653 मतों तक पहुंच गया।
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अब 2025 में, राजनीतिक समीकरण एक बार फिर तेजी से बदल रहे हैं। एनडीए इस सीट पर कांग्रेस की पकड़ को कमजोर करने के लिए नई रणनीति पर काम कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि हम (HAM) को इस बार मौका न देकर एनडीए किसी दूसरे घटक दल को मैदान में उतार सकता है। एनडीए के भीतर यह रणनीतिक बदलाव इसलिए भी अहम है क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद की सभी छह विधानसभा सीटों पर राजद को बढ़त मिली थी, जिसमें कुटुंबा भी शामिल रही।
जातीय समीकरण
कुटुंबा सीट पर रविदास समाज की संख्या सबसे अधिक है और वे निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अनुसूचित जाति मतदाता लगभग 29.2% हैं, जबकि मुस्लिम आबादी करीब 7.8% और राजपूत मतदाता भी प्रभावशाली माने जाते हैं। इन जातीय समूहों की एकजुटता या विभाजन ही तय करेगा कि 2025 में सत्ता की बाजी किसके हाथ आएगी।
कुटुंबा विधानसभा अब न सिर्फ स्थानीय राजनीति का मुद्दा है, बल्कि यह बिहार में कांग्रेस और एनडीए की रणनीति का प्रतीक बन चुकी है। इस सीट पर होने वाला मुकाबला बिहार की बदलती राजनीतिक हवा का संकेतक साबित हो सकता है।






















