केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि भारत सरकार ने राजनीतिक विषयों के कैबिनेट में फैसला लिया है कि जाति आधारित जनगणन को आने वाली जनगणना में शामिल किया जाएगा. वहीं मोदी सरकार के इस फैसले पर राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद की पहली प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने एक्स पर लिखा है कि- मेरे जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्षता रहते दिल्ली में हमारी संयुक्त मोर्चा की सरकार ने 1996-97 में कैबिनेट से 2001 की जनगणना में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया था जिस पर बाद में NDA की वाजपेयी सरकार ने अमल नहीं किया।
2011 की जनगणना में फिर जातिगत गणना के लिए हमने संसद में जोरदार माँग उठाई। मैंने, स्व॰ मुलायम सिंह जी, स्व॰ शरद यादव जी ने इस माँग को लेकर कई दिन संसद ठप्प किया और बाद में प्रधानमंत्री स्व॰ मनमोहन सिंह जी के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराने के आश्वासन के बाद ही संसद चलने दिया। देश में सर्वप्रथम जातिगत सर्वे भी हमारी 17 महीने की महागठबंधन सरकार में बिहार में ही हुआ।
जिसे हम समाजवादी जैसे आरक्षण, जातिगणना, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि 30 साल पहले सोचते है उसे दूसरे लोग दशकों बाद फॉलो करते है। जातिगत जनगणना की माँग करने पर हमें जातिवादी कहने वालों को करारा जवाब मिला। अभी बहुत कुछ बाक़ी है। इन संघियों को हमारे एजेंडा पर नचाते रहेंगे।
वहीं सपा नेता आईपी सिंह ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा-“जातिगत जनगणना सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में ही हो। भारतीय जनता पार्टी को आखिर देश की मांग के आगे झुकना ही पड़ा। मगर ध्यान रहे, पिछड़ों, दलितों और वंचितों की लड़ाई अभी यहीं ख़त्म नहीं होती, यह जनगणना कौन करेगा? समिति के सदस्य हर समाज के लोग होंगे या नहीं? सही जनगणना होनी बहुत जरूरी है. केंद्र सरकार से हम सभी की मांग है कि यह जनगणना सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में ही हो।”
सपा ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया
बता दें कि सपा चीफ अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। सपा ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह जातिगत जनगणना से बच रही है, क्योंकि इससे OBC और अन्य वंचित समुदायों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी। सपा ने साल 2011 की जनगणना के दौरान भी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में इसकी मांग उठाई थी।