पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चार साल से व्यक्तिगत,पारिवारिक एवं पार्टी के तौर पर परेशान चल रहे हैं। चारा घाटाले के अलग-अलग मामलों में सजा काटने के साथ पारिवारिक तनाव को झेल रहे हैं। मगर, सूबे के सभी मुख्यमंत्रियों में लालू सबसे किस्मत वाले हैं। सूबे के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह से लेकर नीतीश कुमार तक एक मामले में लालू से पीछे हैं। सभी मुख्यमंत्रियों के बेटों ने राजनीति में कुछ खास नहीं किया। लालू प्रसाद ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनके बेटे तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने और सूबे की सियासत में बड़ा चेहरा भी हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव को भी तेजस्वी ने अपने बूते लड़ा और बेहतर नतीजे भी आए। श्रीकृष्ण सिंह के बेटे गौरीशंकर सिंह राजनीति में काफी सक्रिय रहे पर बड़ा चेहरा नहीं बन सके। इन्हें अपने पिता का वोट बैंक तक नहीं मिल सका।
नीतीश को तेजस्वी की काबिलियत पर भरोसा
तेजस्वी ने नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन की सरकार में साथ काम किया है। नीतीश का तब से तेजस्वी को लेकर एक सॉफ्ट कॉर्नर रहा है। राजनीतिक जानकार भी कहते हैं तेजस्वी को राजनीतिक की बारीकी लालू के साथ नीतीश से भी मिली है। तेजस्वी को जीरो से इस शिखर तक पहुंचाने में नीतीश का भी योगदान है। हाल में इफ्तार पार्टी में भी दोनों गंभीर मुद्रा में काफी देर तक बातचीत कर रहे थे। दिल्ली एम्स से डिस्चार्ज होने के बाद लालू ने बयान दिया कि हम चाहते हैं कि तेजस्वी और नीतीश साथ मिलकर काम करें।
नीतीश के बेटे राजनीति से दूर
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे प्रशांत राजनीति से बिल्कुल दूर हैं। कई बार ऐसे मौके आए, जब लोगों ने कहा कि प्रशांत अब राजनीति में एंट्री करेंगे, मगर नीतीश का कभी बयान नहीं दिया। प्रशांत भी पिता की सियासत से दूर ही रहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एवं हम प्रमुख जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी भी अब राजनीति में सक्रिय हुए हैं। इस विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत के बाद संतोष पहली बार मंत्री बने हैं।
जगन्नाथ मिश्र के बेटे का भी कद बड़ा नहीं
पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्रा का भी राजनीतिक कद पिता एवं चाचा ललित नारायण मिश्रा इतना बड़ा नहीं है। अभी मधुबनी जिले की झंझारपुर सीट से विधायक हैं। मंत्री भी रहे हैं, मगर सत्ता के शीर्ष पदों तक नहीं पहुंच सकें हैं।
भागवत झा आजाद के बेटे का भी कुछ कमाल नहीं
पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा के बेटे कीर्ति आजाद फिलहाल टीएमयू में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस छोड़कर ममता बनर्जी का दामन थामा है। इससे पहले बीजेपी सरकार में मंत्री रहे चुके हैं। सांसद भी रहे हैं, मगर यह भी बिहार की राजनीति में कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके।
सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बेटे भी बिहार में बड़ा चेहरा नहीं
सत्येंद्र नारायण सिन्हा भी 1989 मार्च से दिसंबर 1989 तक मुख्यंमत्री रहे। इनके बेटे निखिल कुमार आईपीएस अधिकारी रहे हैं। नागालैंड और केरल के राज्यपाल रहे चुके हैं। मगर, बिहार की सियासत में बहुत सक्रिय नहीं रहे। मजदूरों के नेता से बिहार के मुख्यमंत्री बनने वाले बिंदेश्वरी दुबे की पीढ़ी भी बिहार की राजनीति का बड़ा चेहरा नहीं बन सकी।
कर्पूरी ठाकुर के बेटे राज्यसभा सांसद
मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। मगर, इन्हें पिता जैसी पहचान बिहार की राजनीति में हासिल नहीं हुई है।