नई दिल्ली : राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने कथित लैंड-फॉर-जॉब भ्रष्टाचार मामले में CBI द्वारा दर्ज FIR और चार्जशीट को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले में गुरुवार को सुनवाई शुरू हुई, जिसमें लालू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पैरवी की।
लालू के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, किसी भी जांच को शुरू करने से पहले अनिवार्य मंजूरी लेना जरूरी है। उन्होंने कहा कि CBI ने इस मामले में दूसरों के लिए तो मंजूरी ली, लेकिन लालू प्रसाद यादव के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए आवश्यक अनुमति नहीं ली गई। सिब्बल ने इस आधार पर CBI की जांच को गैरकानूनी करार देने की मांग की।
यह मामला 2004 से 2009 के बीच का है, जब लालू प्रसाद यादव केंद्र में UPA-1 सरकार के दौरान रेल मंत्री थे। CBI ने आरोप लगाया है कि इस दौरान लालू और उनके परिवार ने रेलवे में ग्रुप डी की नौकरियों के बदले जमीनें सस्ते दामों पर हासिल कीं। इस मामले में लालू के अलावा उनके बेटों तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती को भी आरोपी बनाया गया है।
इससे पहले अक्टूबर 2024 में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने लालू और उनके बेटों को इस मामले में 1-1 लाख रुपये के बॉन्ड पर जमानत दी थी। फरवरी 2025 में कोर्ट ने लालू और उनके परिवार को फिर से समन जारी किया था। वहीं, सितंबर 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लालू के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी, जिसके बाद CBI ने अपनी कार्रवाई तेज कर दी थी।
लालू प्रसाद यादव का कहना है कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है। दूसरी ओर, CBI का दावा है कि उनके पास ठोस सबूत हैं जो इस भ्रष्टाचार के मामले को साबित करते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर अब सबकी नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह तय करेगा कि इस मामले में CBI की जांच आगे बढ़ेगी या नहीं।
यह पहली बार नहीं है जब लालू कानूनी पचड़े में फंसे हैं। इससे पहले भी वह ₹139 करोड़ के ट्रेजरी घोटाले में जांच का सामना कर चुके हैं। इस मामले का नतीजा न केवल लालू के राजनीतिक करियर, बल्कि बिहार की सियासत पर भी गहरा असर डाल सकता है।