Laukaha Vidhansabha Seat: बिहार की राजनीति में मधुबनी जिले की लौकहा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 40) का महत्व हमेशा खास रहा है। झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट 1951 से अब तक कई उतार-चढ़ाव देख चुकी है। यहां की राजनीति कभी कांग्रेस और वाम दलों के इर्द-गिर्द घूमती रही तो कभी जनता दल और राजद के बीच सत्ता की खींचतान ने इसे सुर्खियों में बनाए रखा। जातीय समीकरणों और सियासी गठजोड़ों ने हर चुनाव में नए अध्याय लिखे हैं, यही वजह है कि 2025 का चुनाव भी यहां बेहद दिलचस्प होने वाला है।
चुनावी इतिहास
1951 से 57 तक लौकहा कांग्रेस का गढ़ रहा। उसके बाद 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) ने यहां कब्जा जमाया। 1967 में कांग्रेस की वापसी हुई, लेकिन ज्यादा दिन टिक नहीं पाई। 1972 के बाद वामपंथियों का प्रभाव बढ़ा और 90 के दशक तक सीपीआई की पकड़ मजबूत रही। लाल बिहारी यादव ने 1990 और 1995 में लगातार दो बार जीत दर्ज कर यहां कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा कायम रखा। इस तरह, लौकहा विधानसभा की शुरुआती राजनीति कांग्रेस और सीपीआई के इर्द-गिर्द घूमती रही।
Phulparas Vidhansabha Seat का चुनावी समीकरण.. महिला नेतृत्व से लेकर जातीय संतुलन तक दिलचस्प सफर
साल 2005 से इस सीट पर जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने मजबूती से अपनी पकड़ बनाई। हरि प्रसाद साह ने 2005 और 2010 दोनों चुनाव जीतकर RJD के चितरंजन प्रसाद यादव को हराया। 2015 में जेडीयू के लक्ष्मेश्वर राय ने बीजेपी उम्मीदवार प्रमोद कुमार प्रियदर्शी को करीब 23 हजार वोटों के बड़े अंतर से हराकर अपनी ताकत दिखाई। हालांकि, 2020 के चुनाव में तस्वीर बदल गई। आरजेडी उम्मीदवार भारत भूषण मंडल ने जेडीयू के लक्ष्मेश्वर राय को 9471 वोटों से हराकर सीट पर लालटेन की वापसी कराई।
जातीय समीकरण
लौकहा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति जातीय समीकरणों पर गहराई से टिकी हुई है। यादव समाज यहां निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके अलावा ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और मुस्लिम वोटर भी चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं। यही कारण है कि कोई भी पार्टी उम्मीदवार तय करने से पहले इस समीकरण को ध्यान में रखती है। यहां की कुल मतदाता संख्या 2,85,441 है, जिसमें 1,47,732 पुरुष और 1,73,705 महिला मतदाता शामिल हैं। महिला वोटर्स की अधिक संख्या भी राजनीतिक दलों को चुनावी रणनीति तय करने में नई दिशा देती है।
लौकहा सीट का इतिहास बताता है कि यहां के मतदाता बदलाव के पक्षधर रहे हैं। कांग्रेस से वामपंथ, वामपंथ से जेडीयू और फिर आरजेडी तक की यात्रा यह दर्शाती है कि यहां जातीय समीकरण और क्षेत्रीय प्रभाव दोनों ही मिलकर सत्ता की चाबी सौंपते हैं। 2025 के चुनाव में जहां आरजेडी इस जीत को बरकरार रखने की कोशिश करेगी, वहीं जेडीयू और एनडीए इसे वापसी का मौका मानकर पूरी ताकत झोंकेंगे। इस चुनावी जंग में यादव वोट बैंक की गोलबंदी और महिलाओं की बढ़ती भागीदारी बड़ा फैक्टर साबित हो सकती है।
















